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शामली विधानसभा राष्ट्रीय लोकदल के टिकट के सही हकदार विजेंद्र मालिक


फिर पछताए क्या होत ,जब चिड़िया चुग गई खेत, कहीं  सहेंद्र सिंह रमाला ना बन जाए   प्रसन्न चौधरी, आज भी कम नहीं हुआ बीजेपी का मोह , पत्नी को जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने के बावजूद भी कार्यकर्ताओं में छाप छोड़ने में नाकाम है प्रसन्न चौधरी ,कार्यकर्ताओं के थाने तहसील स्तर के कार्य भी नहीं करा पाए प्रसन्न चौधरी 2022 के चुनाव में कार्य न कराए पाना सबसे बड़ा रोड़ा,

गठवाला खाप के बाबा राजेंद्र मलिक का बीजेपी से मोहों किसी से छिपा नहीं है और किन्ही कारणों  से शामली विधानसभा से किसी मलिक का टिकट न होकर अन्य किसी को दे दिया जाए तो वह कहीं  आग में घी का काम न कर जाए समय रहते सोचना होगा रालोद प्रमुख, अवसर की राजनीति के चलते टिकट के दावेदार हैं

  प्रसन्न चौधरी, छपरौली विधायक से सबक लेने की आवश्यकता,आपको बता दें कि जो जो 2022 का चुनाव नजदीक आता जा रहा है ऐसे ही राजनीतिक पारा चढ़ता जा रहा है आज हम चर्चा करेंगे शामली विधानसभा के शामली विधानसभा सीट से रालोद के उम्मीदवार के रूप में अपने आप को प्रस्तुत कर रहे प्रशन चौधरी के सामने यूं तो अनेकों समस्याएं मोबाइल खड़ी है लेकिन सबसे बड़ी समस्या उनके सामने उनका बीजेपी से लगाओ जो कि रालोद ज्वाइन करने के बाद आज भी कम नहीं हुआ वही उनके द्वारा उनकी पत्नी के जिला पंचायत अध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान 

अपने कार्यकर्ताओं एवं क्षेत्र की जनता के थाने तहसील स्तर के कार्य भी न करा पाना ऊपर से अपने आप को मजबूर दिखाना कि एक मंत्री के इशारे पर नहीं किए जाते मेरे कार्य सहानुभूति लेने का जो प्रयास किया गया वह उल्टा पड़ता नजर आ रहा है जबकि क्षेत्र में तो यह भी चर्चा है कि यदि प्रसन्न चौधरी को रालोद के टिकट पर शामली विधानसभा से उम्मीदवार बनाया जाता है और मानो की वह जीत भी जाता है तो शामली को छपरोली बनते ज्यादा देर नहीं लगेगी जिस तरह छपरौली विधायक  सहेंद्र सिंह रमाला भाजपा की दबाव की राजनीति को नहीं खेल पाए और पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हो गए यही हाल कहीं प्रसन्न चौधरी के ना हो जाए जबकि पर्सन चौधरी का लगाओ आज भी बीजेपी से होने के चलते ज्यादा चांस है

कि ऐसा हो और फिर ऊपर से दबाव भी ना झेल पाने की स्थिति इसलिए क्षेत्र की जनता शामली को छपरोली बनता नहीं देखना चाह रही वही पिछला चुनाव शामली विधानसभा से रालोद के टिकट पर हाल चुके विजेंद्र मलिक या इस बार राजनीति से कुछ हटे से नजर आ रहे हैं लेकिन वही जनता उनके पक्ष में खड़ी दिख रही है और कहना है कि जब बिजेंद्र मलिक को हार का टिकट दिया जा सकता है तो इस बार माहौल ठीक होने पर उस को टिकट क्यों नहीं क्योंकि पिछली बार परिस्थितियां कुछ और थी और उसके बावजूद भी विजेंद्र मलिक ने अच्छा प्रदर्शन करते हुए पार्टी की साक बचाई थी इस बार परिस्थिति कुछ और है इस बार भी विजेंद्र मलिक को ही टिकट मिलना चाहिए वहीं कुछ मतदाता इससे अलग सोच रखते हैं और उनका कहना है कि कैंडिडेट शामली नगर पालिका से होना चाहिए ताकि वह नगर पालिका क्षेत्र की वोट अधिक ले सके और जीत को आसान बना सके टिकट होगा किसका यह तो आने वाला समय ही बताएगा और यह तय करना भी रालोद प्रमुख जयंत चौधरी अधिकार है

लेकिन इतना तय है कि यदि जैसा कि प्रसन्न चौधरी दावा कर रहे हैं कि शामली विधानसभा से उनका टिकट पक्का है और उन्हें को टिकट मिलता है तो जहां मलिक यानी गठवाला खाप का विरोध झेलना पड़ सकता है वही नगर पालिका क्षेत्र शामली व नगर पंचायत  एलम और कांधला मैं भी पार्टी को होगा भारी नुकसान कुछ क्षेत्र में सिमट कर रह जाने का है अंदेशा लेकिन जैसा चर्चा आगे जीत भी जाते हैं तो रालोद को अलविदा कहने में जरा भी देर नहीं लगाएंगे प्रसन्न चौधरी क्योंकि जानकारी जानकार सूत्रों की माने तो अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत भी प्रसन्न चौधरी राष्ट्रीय लोक दल से ही करना चाह रहे थे जिसके चलते तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अजीत सिंह जी से मुलाकात भी कर चुके थे लेकिन फिर अचानक बीजेपी में शामिल होना भी क्षेत्र में बना था चर्चा का विषय देखना यह होगा कि क्या पार्टी हाईकमान शामली को छपरोली बनना देखना चाहती है या फिर असली हकदार को देती है टिकट या करेगी शामली सिटी की अनदेखी यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि विधानसभा 2022 का शामली विधानसभा  चुनाव कुछ अलग ही इतिहास लिखने जा रहा है फिर भी पार्टी हाईकमान को समय रहते उचित न लेने की आवश्यकता अन्यथा फिर वही बात सच साबित होगी कि,फिर पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत।

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