Featured Posts

बीजेपी को हराने को नहीं बल्कि सपा को हराने को करेगा मुस्लिमो का एक बड़ा तबका अन्य पार्टी को वोट

बीजेपी को हराने को नहीं बल्कि सपा को हराने को करेगा मुस्लिमो का एक बड़ा तबका अन्य पार्टी को वोट

*हिन्दू मुस्लिमो में मतदाताओं को न बांटो, सपा का ये राग अब चलने वाला नहीं*

*सम्भल जाओ मुसलमानों नहीं तो नस्ले हो जाएगी तबाह*

*मुज़फ्फरनगर।* नगर निकाय चुनाव में मुस्लिमो का यूपी में रुख अलग ही दिख रहा है। सपा से है खफा, ये तो जाहिर है लेकिन सवाल यह है कि आखिर मुसलमान फिर जाएगा कहा?
"दरअसल आपको बता दे कि मुसलमान इस बार भाजपा को हराने के मूंड में कतई नहीं है। 
वो न नेताओ के उस बहकावे में आने वाला कि सपा को वोट दो, नहीं तो बीजेपी आ जायेगी और न ही बीजेपी की जीत से भय में है, क्योकि उसे पता है बीजेपी मुसलमानों के लिए सिर्फ कोरोना की तरह है जो डराता ज्यादा है, लेकिन सपा कैंसर की तरह है जो पूरे शरीर मे फैल कर उसे खत्म कर देता है। 
यूपी में आपको इज्जत नहीं मिलती, आपके साथ जुल्म हो तो सब चुप रहते है, आपके खिलाफ कानून बनते है तो सब चुप रहते है लेकिन आप फिर भी बीजेपी को हराने के लिए सपा जैसी पार्टी को मजबूत करने पर लगे है। 
याद करिए सम्भल के सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने सपा की क्यो मुखालफत की,
इमरान मसूद की राजनीति को धराशाई करने की कोशिश करने वाली पार्टी कौन सी है। 
क्या आपको पता है कि सपा आपकी वोट को पसंद करती है। आपके नेताओ को नही। 
इमरान मसूद पश्चिम की राजनीति में एक अलग असर डालते है। खासकर सहारनपुर में सपा को कभी उभरने नहीं दिया इसलिए उनकी राजनीति को मिट्टी में मिलाने के लिए सपा जॉइन कराकर टिकट भी नही दिया। और फिर मुलायम सिंह के शागिर्द आशु मलिक को वहां भेज दिया। 
इलाहाबाद में जो कुछ हुआ आप सब वाकिफ है। आज़म खान की राजनीति को मिट्टी में मिला दिया गया। 
शफीकुर्रहमान बर्क सपा के सांसद होकर भी सपा के खिलाफ है, लेकिन हमारे मुज़फ्फरनगर में मुस्लिम नेताओं का ज़मीर तो देखो। अब भी उम्मीद लगाकर बैठे है। पूर्व सांसद, पूर्व विधायक सम्मानित पदों पर रहकर भी कही कोई पूछ नही लेकिन एक अल्फ़ाज़ निकालने को तैयार नहीं।
अब तो बराबरी की बात होगी, सपा नेताओं से मेरा एक सवाल मुस्लिमो का नाम लेने से क्यो डरते है।
वोट चाहिए लेकिन नाम पसंद नहीं है। 
इस बार मुसलमान बिल्कुल भी भाजपा को हराने को वोट नहीं देंगा। क्योकि ये टेंडर अब खत्म हुआ, कि बीजेपी हराओ, फिर बीजेपी में तो हम जीतकर खुद शामिल हो जायेगे। 
आपको बता दे कि 
*नेताओ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल इनका एक पाव सपा में दूसरा भाजपा तो कभी कांग्रेस में होता है।*
जीतने के बाद कहते है कि मुसलमानों ने हमे वोट नही किया था, उन्होंने वोट सपा या कांग्रेस को किया, कुल मिलाकर उनका अहसान अखिलेश पर है। हम पर नहीं, हमे वोट करते तो निर्दलीय करके दिखाए, इसलिए भटकने से बचिए, और ऑप्शन ढूँढिये, *सिर्फ इस गुमान में मत रहिए कि सपा के अलावा ओर चारा ही क्या है, यही सोचते सोचते आप बर्बादी की कगार पर जा पहुंचे।*
सबसे ज्यादा वोट आप करते हो लेकिन आपके मुस्लिम नेताओं को चुनाव तक मे पूछना सपा गवारा नही करती। क्योकि आप बिना सोचे, बिना समझे सपा को वोट कर रहे हो,  जिसकी मिसाल हाथी के दांत जैसी है, जो बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और ही होते है। 
इन सेक्युलर का चौला ओढ़े प्रत्याशियों से अच्छा है कि आप सीधे भाजपा को ही वोट कर दे, ताकि बाद में पछताना न पड़े। 
आपकी लड़ाई में राकेश शर्मा कहा दिखे, आपके घर तोड़े गए, आप दुख दर्द में कहा खड़े दिखे, आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी है, इन नेताओं से उम्मीद रखना बंद करो। 
ये आपको अपने बराबर में बैठाना भी पसंद नहीं करते है, हा चापलूसी आप उनकी करो तो बहुत पसंद करते है। आपको नेता बनाना पसंद नहीं करते है, हा रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखकर आपको मोहरा बनाना जरूर पसंद करते है, क्या भूल गए सहारनपुर में इमरान मसूद की राजनीति खत्म करने का प्रयास करने वाली पार्टी कौन सी है। 
मुज़फ्फरनगर से मुस्लिम लीडरशिप खत्म करने वाली पार्टी कौन सी है?
क्या भूल गए मुस्लिम दाढ़ी टोपी वाले को मंच से धक्का देकर उतारने वाली पार्टी कौन सी है। 
क्या भूल गए भाजपा के दुश्मन मुसलमान कौन सी पार्टी की वजह से है। 
आपको प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री नही बनना, सरकार नहीं बनानी, यहां तक कि अब तो विधायक सांसद भी नही बनने की कगार पर हो, 
फिर क्यो भाजपा को हराने के चक्कर मे खुद को मिटाने पर तुले हो, भाजपा को हराने का टेंडर छोड़ दो, यह खुद अपनी वोटो से क्यो नही हराते,
आपको पता होना चाहिए ये जो सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े हुए नेता आपसे वोट मांगते है, इन्हें मौका मिले तो यह भाजपा में जाने से नहीं कतराएंगे, लेकिन वहां सब लोग एडजस्ट नहीं हो सकते इसलिए सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़कर इन पार्टी में नेतागिरी कर रहे है। ये सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता आपके कांधे पर हाथ रख दे तो आप ऐसे खुश हो जाते है जैसे ज़िंदगी मे सब कुछ पा लिया हो, ये मत भूलो ये सिर्फ आपको भीड़ बनाने को आपके सर पर हाथ रखते है, लेकिन आपको नेता बिल्कुल भी बनाना नहीं चाहते, हा जो रात दिन इनके लिए नतमस्तक हो तो उसे नेता भी बना देते है लेकिन उसका कंट्रोल अपने हाथ मे रखते है ताकि वो आपकी आवाज न उठा सके। फरमान अब्बासी लेखक✍🏻
@Vidhayak Darpan
8010884848
7599250450

शामली सदर विधायक बाल बाल बचे

कल उत्तर प्रदेश के शामली सदर विधायक प्रसन चौधरी देर रात्रि शामली से मेरठ जाते समय सड़क पर अचानक आवारा गोवंश के आने से हादसा हो गया था। भगवान और आप सभी के आशीर्वाद से विधायक जी व उनके सहयोगी सुरक्षित है।

सपा से आखिर क्यों खफा हो रहे अधिकतर कार्यकर्ता, मुज़फ्फरनगर नगर चेयरमैन प्रभारी की विचारधारा से तो नही है नाराज़ लोग, सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता मुसलमानों की वोट और भीड़ पसंद करते है मुसलमानों को नहीं

मुज़फ्फरनगर। जनपद में समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक चलता हुआ नहीं दिख रहा है। 
नगरपालिका चुनाव का बिगुल बजते ही सैकड़ो नेता व कार्यकर्ताओं के द्वारा सपा से ग्रुप बनाकर इस्तीफा दे देना, फिर एक के बाद एक कई लोगो का पार्टी छोड़ देना, सपा में आपसी मतभेद जाहिर करता है। 
सूत्रों की माने तो कई पुराने नेताओ व कार्यकर्ताओं की तो  पार्टी कार्यालय पर सभासद पद के टिकटो को लेकर गर्मा गरमाई भी हुई, 
कुछ को बड़े दबाव के बाद टिकट मिले तो कुछ को सिर्फ आश्वासन तक सीमित रखा गया। 
जैसे तारीख पर तारीख मिलती है, उसी तरह आश्वासन पर आश्वासन मिला। 
कुछ जगहों पर उन्हें टिकट ही नही मिले जो सपा के प्रोग्राम में  गाड़ी और ट्रेक्टर भरकर आदमी लाये और कहीं भेदभाव के तहत उन्हें टिकट दे दिया गया जो आदमी तो लाना दूर बल्कि किसी सभा मे खुद भी न आये हो। 
*बहरहाल मुस्लिमो को सिर्फ लॉलीपॉप मिला, और जिन्हें चॉकलेट मिल भी गई उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद ही नसीब हुई।* किसी को नगर चेयरमैन निर्दलीय प्रत्याशी बनने के डर से तो किसी को दबाव के कारण तो किसी को मुस्लिमो की वोट खिसक न जाये इस डर से टिकट मिले। 
सूत्रों की माने तो सपा के नेताओ की मानसिकता यह है कि मुस्लिम वोट तो उनके घर के है। उन्हें नज़रंदाज़ करो, और वोट दूसरे समुदाय की हासिल करो, जो शायद इस चुनाव में कतई नहीं चलेगा। 
क्योकि नगर के लोगो, खासकर मुसलमानों ने अंजू अग्रवाल से सबक सीख लिया है। उन्होंने भी सेक्युलर बनकर मुस्लिमो की वोट हासिल करके चुनाव जीता और फिर बाद में भाजपाई हो गई। 
लोगो को उस समय बड़ा दुख हुआ था, इसलिए दोबारा दुख करने की मेरे ख्याल से मुसलमानों को गलती नहीं करनी चाहिए।
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मदीना चौक से रुड़की चुंगी की ओर जाने वाला रास्ता आज भी विकास की राह देख रहा है, जबकि इसी क्षेत्र ने अंजू अग्रवाल को बड़ी संख्या में वोट किया था। 
*नेताओ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल इनका एक पाव सपा में दूसरा भाजपा तो कभी कांग्रेस में होता है।*
जीतने के बाद कहते है कि मुसलमानों ने हमे वोट नही किया था, उन्होंने वोट सपा या कांग्रेस को किया, कुल मिलाकर उनका अहसान अखिलेश पर है। हम पर नहीं, हमे वोट करते तो निर्दलीय करके दिखाए, इसलिए भटकने से बचिए, और ऑप्शन ढूँढिये, *सिर्फ इस गुमान में मत रहिए कि सपा के अलावा ओर चारा ही क्या है, यही सोचते सोचते आप बर्बादी की कगार पर जा पहुंचे।*
सबसे ज्यादा वोट आप करते हो लेकिन आपके मुस्लिम नेताओं को चुनाव तक मे पूछना सपा गवारा नही करती। क्योकि आप बिना सोचे, बिना समझे सपा को वोट कर रहे हो,  जिसकी मिसाल हाथी के दांत जैसी है, जो बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और ही होते है। 
इन सेक्युलर का चौला ओढ़े प्रत्याशियों से अच्छा है कि आप सीधे भाजपा को ही वोट कर दे, ताकि बाद में पछताना न पड़े। 
आपकी लड़ाई में राकेश शर्मा कहा दिखे, आपके घर तोड़े गए, आप दुख दर्द में कहा खड़े दिखे, आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी है, इन नेताओं से उम्मीद रखना बंद करो। 
ये आपको अपने बराबर में बैठाना भी पसंद नहीं करते है, हा चापलूसी आप उनकी करो तो बहुत पसंद करते है। आपको नेता बनाना पसंद नहीं करते है, हा रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखकर आपको मोहरा बनाना जरूर पसंद करते है, क्या भूल गए सहारनपुर में इमरान मसूद की राजनीति खत्म करने का प्रयास करने वाली पार्टी कौन सी है। 
मुज़फ्फरनगर से मुस्लिम लीडरशिप खत्म करने वाली पार्टी कौन सी है?
क्या भूल गए मुस्लिम दाढ़ी टोपी वाले को मंच से धक्का देकर उतारने वाली पार्टी कौन सी है। 
क्या भूल गए भाजपा के दुश्मन मुसलमान कौन सी पार्टी की वजह से है। 
आपको प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री नही बनना, सरकार नहीं बनानी, यहां तक कि अब तो विधायक सांसद भी नही बनने की कगार पर हो, 
फिर क्यो भाजपा को हराने के चक्कर मे खुद को मिटाने पर तुले हो, भाजपा को हराने का टेंडर छोड़ दो, यह खुद अपनी वोटो से क्यो नही हराते,
आपको पता होना चाहिए ये जो सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े हुए नेता आपसे वोट मांगते है, इन्हें मौका मिले तो यह भाजपा में जाने से नहीं कतराएंगे, लेकिन वहां सब लोग एडजस्ट नहीं हो सकते इसलिए सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़कर इन पार्टी में नेतागिरी कर रहे है। ये सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता आपके कांधे पर हाथ रख दे तो आप ऐसे खुश हो जाते है जैसे ज़िंदगी मे सब कुछ पा लिया हो, ये मत भूलो ये सिर्फ आपको भीड़ बनाने को आपके सर पर हाथ रखते है, लेकिन आपको नेता बिल्कुल भी बनाना नहीं चाहते, हा जो रात दिन इनके लिए नतमस्तक हो तो उसे नेता भी बना देते है लेकिन उसका कंट्रोल अपने हाथ मे रखते है ताकि वो आपकी आवाज न उठा सके, जो मन मे था लिख दिया, अंजाम की परवाह नही करता। इसके बाद धमकी भी आएगी और साजिश भी रची जाएगी लेकिन मैं न मौत से डरता हूँ और न ही जेल की चार दीवारी का खौफ रखता हूँ। विधायक दर्पण न्यूज मुज़फ्फरनगर से पत्रकार फरमान अब्बासी का लेख ✍🏻

@Vidhayak Darpan

8010884848
7599250450

सपा से आखिर क्यों खफा हो रहे अधिकतर कार्यकर्तामुज़फ्फरनगर नगर चेयरमैन प्रभारी की विचारधारा से तो नही है नाराज़ लोग,सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता मुसलमानों की वोट और भीड़ पसंद करते है मुसलमानों को नहीं

मुज़फ्फरनगर।* जनपद में समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक चलता हुआ नहीं दिख रहा है। 
नगरपालिका चुनाव का बिगुल बजते ही सैकड़ो नेता व कार्यकर्ताओं के द्वारा सपा से ग्रुप बनाकर इस्तीफा दे देना, फिर एक के बाद एक कई लोगो का पार्टी छोड़ देना, सपा में आपसी मतभेद जाहिर करता है। 
सूत्रों की माने तो कई पुराने नेताओ व कार्यकर्ताओं की तो  पार्टी कार्यालय पर सभासद पद के टिकटो को लेकर गर्मा गरमाई भी हुई, 
कुछ को बड़े दबाव के बाद टिकट मिले तो कुछ को सिर्फ आश्वासन तक सीमित रखा गया। 
जैसे तारीख पर तारीख मिलती है, उसी तरह आश्वासन पर आश्वासन मिला। 
कुछ जगहों पर उन्हें टिकट ही नही मिले जो सपा के प्रोग्राम में  गाड़ी और ट्रेक्टर भरकर आदमी लाये और कहीं भेदभाव के तहत उन्हें टिकट दे दिया गया जो आदमी तो लाना दूर बल्कि किसी सभा मे खुद भी न आये हो। 
*बहरहाल मुस्लिमो को सिर्फ लॉलीपॉप मिला, और जिन्हें चॉकलेट मिल भी गई उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद ही नसीब हुई।* किसी को नगर चेयरमैन निर्दलीय प्रत्याशी बनने के डर से तो किसी को दबाव के कारण तो किसी को मुस्लिमो की वोट खिसक न जाये इस डर से टिकट मिले। 
सूत्रों की माने तो सपा के नेताओ की मानसिकता यह है कि मुस्लिम वोट तो उनके घर के है। उन्हें नज़रंदाज़ करो, और वोट दूसरे समुदाय की हासिल करो, जो शायद इस चुनाव में कतई नहीं चलेगा। 
क्योकि नगर के लोगो, खासकर मुसलमानों ने अंजू अग्रवाल से सबक सीख लिया है। उन्होंने भी सेक्युलर बनकर मुस्लिमो की वोट हासिल करके चुनाव जीता और फिर बाद में भाजपाई हो गई। 
लोगो को उस समय बड़ा दुख हुआ था, इसलिए दोबारा दुख करने की मेरे ख्याल से मुसलमानों को गलती नहीं करनी चाहिए।
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मदीना चौक से रुड़की चुंगी की ओर जाने वाला रास्ता आज भी विकास की राह देख रहा है, जबकि इसी क्षेत्र ने अंजू अग्रवाल को बड़ी संख्या में वोट किया था। 
*नेताओ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल इनका एक पाव सपा में दूसरा भाजपा तो कभी कांग्रेस में होता है।*
जीतने के बाद कहते है कि मुसलमानों ने हमे वोट नही किया था, उन्होंने वोट सपा या कांग्रेस को किया, कुल मिलाकर उनका अहसान अखिलेश पर है। हम पर नहीं, हमे वोट करते तो निर्दलीय करके दिखाए, इसलिए भटकने से बचिए, और ऑप्शन ढूँढिये, *सिर्फ इस गुमान में मत रहिए कि सपा के अलावा ओर चारा ही क्या है, यही सोचते सोचते आप बर्बादी की कगार पर जा पहुंचे।*
सबसे ज्यादा वोट आप करते हो लेकिन आपके मुस्लिम नेताओं को चुनाव तक मे पूछना सपा गवारा नही करती। क्योकि आप बिना सोचे, बिना समझे सपा को वोट कर रहे हो,  जिसकी मिसाल हाथी के दांत जैसी है, जो बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और ही होते है। 
इन सेक्युलर का चौला ओढ़े प्रत्याशियों से अच्छा है कि आप सीधे भाजपा को ही वोट कर दे, ताकि बाद में पछताना न पड़े। 
आपकी लड़ाई में राकेश शर्मा कहा दिखे, आपके घर तोड़े गए, आप दुख दर्द में कहा खड़े दिखे, आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी है, इन नेताओं से उम्मीद रखना बंद करो। 
ये आपको अपने बराबर में बैठाना भी पसंद नहीं करते है, हा चापलूसी आप उनकी करो तो बहुत पसंद करते है। आपको नेता बनाना पसंद नहीं करते है, हा रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखकर आपको मोहरा बनाना जरूर पसंद करते है, क्या भूल गए सहारनपुर में इमरान मसूद की राजनीति खत्म करने का प्रयास करने वाली पार्टी कौन सी है। 
मुज़फ्फरनगर से मुस्लिम लीडरशिप खत्म करने वाली पार्टी कौन सी है?
क्या भूल गए मुस्लिम दाढ़ी टोपी वाले को मंच से धक्का देकर उतारने वाली पार्टी कौन सी है। 
क्या भूल गए भाजपा के दुश्मन मुसलमान कौन सी पार्टी की वजह से है। 
आपको प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री नही बनना, सरकार नहीं बनानी, यहां तक कि अब तो विधायक सांसद भी नही बनने की कगार पर हो, 
फिर क्यो भाजपा को हराने के चक्कर मे खुद को मिटाने पर तुले हो, भाजपा को हराने का टेंडर छोड़ दो, यह खुद अपनी वोटो से क्यो नही हराते,
आपको पता होना चाहिए ये जो सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े हुए नेता आपसे वोट मांगते है, इन्हें मौका मिले तो यह भाजपा में जाने से नहीं कतराएंगे, लेकिन वहां सब लोग एडजस्ट नहीं हो सकते इसलिए सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़कर इन पार्टी में नेतागिरी कर रहे है। ये सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता आपके कांधे पर हाथ रख दे तो आप ऐसे खुश हो जाते है जैसे ज़िंदगी मे सब कुछ पा लिया हो, ये मत भूलो ये सिर्फ आपको भीड़ बनाने को आपके सर पर हाथ रखते है, लेकिन आपको नेता बिल्कुल भी बनाना नहीं चाहते, हा जो रात दिन इनके लिए नतमस्तक हो तो उसे नेता भी बना देते है लेकिन उसका कंट्रोल अपने हाथ मे रखते है ताकि वो आपकी आवाज न उठा सके, जो मन मे था लिख दिया, अंजाम की परवाह नही करता। इसके बाद धमकी भी आएगी और साजिश भी रची जाएगी लेकिन मैं न मौत से डरता हूँ और न ही जेल की चार दीवारी का खौफ रखता हूँ। विधायक दर्पण न्यूज मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश से पत्रकार फरमान अब्बासी की रिपोर्ट ✍🏻*

@Vidhayak Darpan
8010884848
7599250450

दिलचस्प है इस सीट का इतिहास यहां होगा रोमांचक मुकाबला, एक ही सीट पर गठबंधन के दो प्रत्याशी एक साइकिल तो दूसरा नल

कांधला, उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी होते ही कस्बे की राजनीति में हलचल मची हुई है एक तरफ मरहूम मिया फेजुल इस्लाम पुत्र मिया नजमूल इस्लाम तो दूसरी तरफ मिर्जा बाबू फैसल बेग
मरहूम मिया फेजुल इस्लाम का इतिहास देखा जाए तो कस्बे के गरीब मजलूम बेसहारा लोगो की हमेशा मदद करना व बे घरों को घर देना गरीब लड़कियो की शादी कराना उनका इतिहास रहा है । और अब उनके बाद उनके पुत्र नजमूल इस्लाम उनके बताए हुए रास्ते पर चल रहे है।
बात की जाए पूर्व नगर निकाय चुनाव की चल रही तैयारियों को लेकर कस्बे के सभी प्रत्याशियों ने अपने अपने कार्यालय खोल और कार्यालय पर भीड़ जुटाना, नाश्ता पानी कराना और बड़े बड़े होडिंग लगाकर प्रचार करना चल रहा था
जरा सी चुनाव की तारीख हटते ही सभी प्रत्याशी अपने-अपने कार्यालय बंद कर वहा से दरी चादर कुर्सियां हटा कर अपने-अपने घरों में कैद हो गए, लेकिन तभी से नज़रुल इस्लाम के बने कार्यालय पर लगातार सैकड़ो गरीब परिवार का खाना  नजमूल इस्लाम के आवास पर बने उनके कार्यालय पर खिलाया जाता रहा है । वही दूसरी और देखा जाए
 पूर्व में नगर निकाय चुनाव की तैयारियां कर रहे बाबू फैसल ने भी अपना कार्यालय बनाया था कस्बे के गरीब परिवारों का हमदर्द कस्बे के लिए प्रमुख समाजसेवी बनने की कोशिश की लेकिन जरा सी चुनाव की तारीख हटते ही बाबू फैसल भी दुम दबा कर अपने घरों में कैद हो गए थे बात की जाए 2023 के नगर निकाय चुनाव की 
कस्बे की नगर पालिका की कुर्सी पर कब्जा करने के लिए सपा को छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया था वही 5 दिन पूर्व में ही कांग्रेस का दामन छोड़कर राष्ट्रीय लोक दल का दामन थाम लिया है । बाबू फैसल को नल का सिंबल मिलने से नाराज कस्बे के राष्ट्रीय लोकदल के सभी कार्यकर्ताओं ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और इस बार राष्ट्रीय लोक दल के सिंबल नल पर अपनी किस्मत अजमा रहे है बाबू फैसल तो वही नजमूल इस्लाम भी इस बार समाजवादी पार्टी के सिंबल साइकिल पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। *सादिक सिद्दीक़ी कांधला*✍🏻

@Vidhayak Darpan
8010884848
7599250450

बीजेपी से अरविंद संगल का टिकट होने के बाद बधाई देने वालो का तांता लगा

शामली। निकाय चुनाव के अंतर्गत शामली सदर सीट पर लंबे इंतजार के बाद बीजेपी नेता पूर्व चेयरमैन पर पार्टी द्वारा भरोसा जताया गया है और शामली शहर नगर पालिका से कमल के फूल पर चुनाव लड़ने के लिए अरविंद संगल का नाम फाइनल हो चुका है। जहां  एक और बीजेपी से अरविंद संगल का टिकट होने के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं में खुशी का माहौल है वही पार्टी के दूसरे खेमे में भारी निराशा छाई हुई है।
आपको बता दें कि शामली नगर पालिका से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने हेतु शहर के दो बीजेपी नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई थी। जहां लंबी गहमागहमी और कयासों के दौर के बाद बीजेपी हाईकमान द्वारा शामली शहर नगरपालिका अध्यक्ष पद के लिए कमल के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ने की जिम्मेदारी पूर्व चेयरमैन अरविंद संगल के कधों पर डाली गई है।बीजेपी हाईकमान के फैसले से शहर के लोग व कार्यकर्ताओं काफी हद तक संतुष्ट दिखाई दे रहे हैं. वही  पार्टी से टिकट मिलने के बाद अरविंद संगल भी फूले नहीं समा रहे हैं। गौरतलब है कि शामली शहर नगर पालिका अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने हेतु दो बीजेपी नेता पिछले काफी समय से दो खेमों में बटे हुए थे। जिसके बाद अब दूसरे खेमे में बेचैनी और निराशा का माहौल है।
वहीं, पूर्व चेयरमैन का कहना है कि पार्टी के द्वारा जो उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई है वह पूरी निष्ठा व ईमानदारी से उसका निर्वहन करेंगे और एक बार फिर शामली शहर नगर पालिका सीट को बीजेपी के खाते में जोड़ने का काम करेंगे बीजेपी के टिकट मिलने के बाद से ही पूर्व चेयरमैन अरविंद संगल के घर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है।
@Vidhayak Darpan
8010884848
7599250450

मेरी किसी अपराधी के साथ कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन जो मैं आंकड़े तथा तथ्य बता रहा उन पर अमल जरूर करें।

योगी आदित्यनाथ तब संसद में रो रहे थे। कह रहे थे क्या मैं संसद का सदस्य हूँ, मैं लाखों वोटों से जीतकर आया हूँ। उन्हें आशंका थी कि उनका एनकाउंटर भी हो सकता है। अध्यक्ष की कुर्सी पर सोमनाथ चटर्जी बैठे थे। आश्वस्त किया कि आप हमारे सम्मानित सदस्य है, सरकार आपकी बात सुनेगी और आपकी रक्षा करेगी। लगभग दर्जनों मामले थे उनपर और कुछ तो बेहद संगीन धाराओं में थे। फिर भी चलते रहे। 

अतीक अहमद तीन बार का निर्दलीय विधायक, चौथी बार समाजवादी पार्टी ने विधायक बनाया और पांचवी बार अपना दल ने। फिर समाजवादी पार्टी ने लोकसभा में पहुंचा दिया। 2023 में उस भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय अतीक अहमद को मार गिराया उधर समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से नवाजा जिसने अतीक अहमद को लोकसभा में पहुंचाया था। 

मेरी किसी अपराधी के साथ कोई सहानुभूति नहीं है लेकिन जो मैं आंकड़े तथा तथ्य बता रहा उनपर अमल जरूर करें। अतीक अहमद भी योगीजी की तरह ही यकीनन लाखों वोटों से ही जीतकर आया था। लाखों वोटों से जीतकर आने वाला व्यक्ति जरूरी नहीं ईमानदार, सभ्य और शिक्षित ही हो लेकिन बात यह कि एक ही समय में अतीक को संसद पहुंचाने वाले मुलायम सिंह जी को पद्म पुरुस्कार और अतीक का हत्या अथवा एनकाउंटर? 

जो भी हो पर हत्या के वक्त अतीक और उसके भाई को एक ही हथकड़ी से बांधा था। जवाबी कार्रवाई में पुलिस से एक गोली नहीं चली और अपराधी पत्रकार बनकर आये थे। इस लाइव एनकाउंटर में सवाल न तो अतीक पर बाक़ी है, न सरकार पर। सवाल सीधा इस बात का है कि जैसे के साथ तैसा हुआ तो जैसा असल में था कैसा? उस जैसे से जनता वाकिफ़ थी या जनता से मीडिया तक का जश्न केवल किसी पहचान के आधार से है? यदि ऐसा है तो क्या न्याय मिल गया? यदि हां तो आपको कुछ अन्य आंकड़े और देखने होंगे। 

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स(ADR) ने योगी आदित्यनाथ की पूरी मंत्रिपरिषद को स्कैन किया है। एडीआर रिपोर्ट की मानें तो योगी आदित्यनाथ के 52 में 22 मंत्रियों का आपराधिक रिकॉर्ड है। प्रतिशत में बात करें तो 49% मंत्री दागी है, इन मंत्रियों पर आपराधिक मुकदमे हैं। मौजूदा योगी सरकार में 20 मंत्री ऐसे हैं, जिन पर गंभीर आपराधिक मुकदमे हैं। ADR ने गंभीर अपराध उसे माना है, जिन धाराओं में 5 साल से ज्यादा की सजा का प्रावधान हो. इस प्रकार योगी सरकार में 44% मंत्री ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर आपराधिक मुकदमे है।

योगी आदित्यनाथ जी के ऊपर से सारे मुकदमे उन्होंने स्वयं मुख्यमंत्री बनते ही वापस ले लिए लेकिन इन बाक़ी का क्या करेंगे? कर भी कैसे पाएंगे जब वे भी आज अतीक अहमद की भांति सत्ता के भागीदार हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इनमें से दर्जनों पर संगीन मामले जैसे दंगा, हत्या, अपहरण, बलात्कार, फिरौती जैसे मामले दर्ज हैं। आप सभी के लिए एक मानक चाहते हैं या फिर पहचान देखकर न्याय? विचार कीजिए क्योंकि मैँ जानता हूँ अतीक अहमद कोई दूध का धुला नहीं था लेकिन मंत्रिमंडल में बैठे लोग भी सब पाक साफ नहीं हो सकते। इसके अतिरिक्त भाजपा के इन नेताओं को भी देखें,

कुलदीप सिंह सेंगर 28 मुकदमे उन्नाव, बृजेश सिंह 106 मुकदमे वाराणसी, धनंजय सिंह 46 मुकदमे जौनपुर, राजा भैया 31 मुकदमे प्रतापगढ़, डॉ उदय भान सिंह, 83 मुकदमे भदोही, अशोक चंदेल 37 मुकदमे हमीरपुर, विनीत सिंह, 34 मुकदमे चंदौसी, बृजभृपण सिंह 84 मुकदमे गोंडा, चुलबुल सिंह 53 मुकदमे बनारस, सोनू सिंह, 57 मुकदमे सुल्तानपुर, मोनू सिंह 48 मुकदमे सुल्तानपुर, अजय सिंह सिपाही 81 मुकदमे मिर्जापुर, पिंदू सिंह 23 मुकदमे  बस्ती, हनी सिंह 48 मुकदमे देवरिया, संग्राम सिंह 58 मुकदमे बिजनौर, चुन्नू सिंह 42 मुकदमे महोबा, बादशाह सिंह 88 मुकदमे महोबा।

इतना ही नहीं स्वयं योगी आदित्यनाथ का विवादों से गहरा नाता रहा है। जिसके कारण इनके ऊपर केस भी दर्ज किए गए। राजनेता होने के साथ साथ इनके ऊपर कई केस भी दर्ज है। जिनकी जानकारी उन्होंने 2014 में हुए लोकसभा चुनाव के हलफनामें में दी थी। 1999 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगीआदित्य नाथ पर महाराजगंज जिले में IPC की धारा 147 (दंगे के लिए दंड), 148 (घातक हथियार से दंगे), 295 (किसी समुदाय के पूजा स्थल का अपमान करना), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण), 153A (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 307 (हत्या का प्रयास) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए दंड) के मामले दर्ज किए गए थे।

इसी साल महाराजगंज में ही इनपर धारा 302 (मौत की सजा) , 307 (हत्या का प्रयास) 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और 427 (पचास रुपये की राशि को नुकसान पहुंचाते हुए शरारत) के तहत भी मामले दर्ज किए गए थे। साल 2006 की बात करें, तो इस साल भी योगी आदित्यनाथ पर गोरखपुर में IPC की धारा 147, 148, 133A (उपद्रव को हटाने के लिए सशर्त आदेश), 285 (आग या दहनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाही), 297 (कब्रिस्तानों पर अतिक्रमण) के मामले दर्ज किए गए थे. 2007 में भी गोरखपुर के मामले में धारा 147, 133A, 295, 297, 435 और 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि गोरखपुर दंगों के दौरान उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। दंगों के दौरान एक युवक के मारे जाने के बाद बिना प्रशासन की अनुमति के योगी ने शहर के मध्य श्रद्धान्जली सभा आयोजित की थी और कानून का उल्लंघन किया था। बहरहाल आप लोगों को टेंशन नहीं लेना है। अतीक अहमद , मुख़्तार अंसारी, आजम खान इत्यादि के सामने 106 मुकदमों वाला बृजेश सिंह है तो विजय मिश्र के सामने 83 मुकदमों वाला उदयभान सिंह इसके अलावा रघुराज प्रताप सिंह पर 31, कुलदीप सिंह सेंगर पर 28, बृजभूषण सिंह पर 84 मुकदमें हैं। 

समय पर भरोसा रखिए। जिस समाज में अपराधियों को आइकॉन बना दिया जाता है, या सत्ता का संरक्षण प्राप्त होता है वह तात्कालिक लाभ भले ही पा जाए, सत्ता में उसका कभी भी दीर्घकालिक वर्चस्व नहीं हो पाता। यह आपके वैचारिक मतभेद की वजह से कोई अल्पकालिक खुशी जरूर हो सकती है लेकिन क्या आपको यकीन है कि ऐसे न्यायिक प्रक्रिया से आपको या आपके लोगों को कभी नहीं गुजरना पड़ेगा? न्याय नहीं मिलता है क्योंकि हमेशा सत्ता अपराधियों के संरक्षण में रही बस चेहरे और मोहरे बदलते रहे। अब आप एकाध के खात्मे पर जश्न मनाइये या दुःखी होइए लेकिन व्यवस्था अभी भी अस्वस्थ तथा दोषपूर्ण है। 

मुज़फ्फरनगर में कौन होगी ‘भाग्यशाली महिला’, जो पायेगी बीजेपी का चेयरमैन टिकट, जाने-कौन है मुख्य दावेदार !

मुजफ्फरनगर। नगर पालिका परिषद के चुनाव का बिगुल बज चुका है, अभी तक कई मजबूत दावेदार चुनाव मैदान में सामने आ रहे थे लेकिन आरक्षण सूची जारी होते ही कई के अरमानों पर पानी फिर गया। उनमे से कुछ ने हिम्मत बटोरी और अपनी-अपनी पत्नियों को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया।

शहर के कुछ और सम्मानित गैर राजनीतिक परिवार भी ऐसे हैं, जिन से जुड़ी महिलाएं भी अध्यक्ष पद के चुनाव मैदान में भाजपा के टिकट की प्रबल दावेदार बनकर उभरी हैं। आज इस खबर में हम आपका परिचय कराते हैं उन सभी संभावित प्रत्याशियों से, जो भाजपा के चेयरमैन टिकट की दावेदारी कर रही हैं। इनमें से किसे टिकट मिलेगा, यह तो भाजपा की अधिकृत सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा लेकिन यह सभी ऐसे प्रत्याशी हैं, जिन को लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं गर्म हैं और यह भी लगभग तय है कि टिकट पाने वाली महिला इन्ही में से होगी।

सबसे पहले चर्चा करते हैं मुजफ्फरनगर में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति के सबसे प्रमुख चेहरे कपिल देव अग्रवाल की। कपिल देव अग्रवाल शहर से तीन बार के विधायक हैं और वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री हैं। मुजफ्फरनगर नगर पालिका का जब सीमा विस्तार हो रहा था तो चर्चा हो रही थी कि मुजफ्फरनगर को भी नगर निगम बना दिया जाएगा।  नगर निगम बनवाकर कपिल देव अग्रवाल अपनी पत्नी को मेयर का चुनाव लड़ाना चाहते हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी कपिल देव को एक बार चेयरमैन, 3 बार विधायक और दो बार मंत्री बनने का मौका दें चुकी है, इसलिए इस बार कपिल देव के परिवार को टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है और न हीं कपिल देव ने अपनी पत्नी या किसी अन्य परिजन के लिए टिकट की मांग की है।

अगला चेहरा है नगर पालिका परिषद की निवर्तमान अध्यक्ष अंजू अग्रवाल का। अंजू अग्रवाल कांग्रेस से चुनाव जीती थी पर जब से चुनाव जीती तब से कपिल देव अग्रवाल से उनका 36 का आंकड़ा चलता रहा था, जिसके चलते उनके काम में रोज अड़ंगे लगाए जा रहे थे। अंजू मुकाबला कर भी रही थी लेकिन आखिर में पारिवारिक दबाव के चलते केंद्रीय मंत्री डॉ संजीव बालियान के समक्ष भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गई। तकनीकी रूप से तो अंजू अग्रवाल वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी में हैं, लेकिन भाजपा ने कभी भी अंजू अग्रवाल को अपना नहीं माना, चाहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मुजफ्फरनगर आगमन रहा हो या अन्य कोई भी अवसर। कार्यकाल पूरा होने तक अंजू अग्रवाल कपिल देव के कोप का कारण बनती रही और रोज किसी ना किसी नई मुसीबत में फंसती रही। वह भी नगर पालिका चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से टिकट चाहती हैं पर बीजेपी में उनके टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है। इसी परिवार के सुरेंद्र अग्रवाल भी टिकट के प्रबल इच्छुक हैं लेकिन उनको भी टिकट मिलने की कोई संभावना नहीं है। मुजफ्फरनगर की राजनीति को जानने वाले जानते हैं कि इस परिवार के मूलचंद सर्राफ शहर में बहुत प्रभाव रखते थे और उन्हीं के प्रभाव का नतीजा था कि भारतीय जनता पार्टी के प्रभुत्व वाले इस शहर में एक बार उनका बेटा पंकज अग्रवाल और दूसरी बार उनके छोटे भाई अशोक अग्रवाल की पत्नी अंजू अग्रवाल शहर की चेयरमैन बन गई। गत दिनों उनका निधन हो गया है और भारतीय जनता पार्टी से इस बार इस परिवार को टिकट मिलने की कोई संभावना फिलहाल नहीं है।