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सपा से आखिर क्यों खफा हो रहे अधिकतर कार्यकर्तामुज़फ्फरनगर नगर चेयरमैन प्रभारी की विचारधारा से तो नही है नाराज़ लोग,सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता मुसलमानों की वोट और भीड़ पसंद करते है मुसलमानों को नहीं

मुज़फ्फरनगर।* जनपद में समाजवादी पार्टी में सब कुछ ठीक चलता हुआ नहीं दिख रहा है। 
नगरपालिका चुनाव का बिगुल बजते ही सैकड़ो नेता व कार्यकर्ताओं के द्वारा सपा से ग्रुप बनाकर इस्तीफा दे देना, फिर एक के बाद एक कई लोगो का पार्टी छोड़ देना, सपा में आपसी मतभेद जाहिर करता है। 
सूत्रों की माने तो कई पुराने नेताओ व कार्यकर्ताओं की तो  पार्टी कार्यालय पर सभासद पद के टिकटो को लेकर गर्मा गरमाई भी हुई, 
कुछ को बड़े दबाव के बाद टिकट मिले तो कुछ को सिर्फ आश्वासन तक सीमित रखा गया। 
जैसे तारीख पर तारीख मिलती है, उसी तरह आश्वासन पर आश्वासन मिला। 
कुछ जगहों पर उन्हें टिकट ही नही मिले जो सपा के प्रोग्राम में  गाड़ी और ट्रेक्टर भरकर आदमी लाये और कहीं भेदभाव के तहत उन्हें टिकट दे दिया गया जो आदमी तो लाना दूर बल्कि किसी सभा मे खुद भी न आये हो। 
*बहरहाल मुस्लिमो को सिर्फ लॉलीपॉप मिला, और जिन्हें चॉकलेट मिल भी गई उन्हें बड़ी मशक्कत के बाद ही नसीब हुई।* किसी को नगर चेयरमैन निर्दलीय प्रत्याशी बनने के डर से तो किसी को दबाव के कारण तो किसी को मुस्लिमो की वोट खिसक न जाये इस डर से टिकट मिले। 
सूत्रों की माने तो सपा के नेताओ की मानसिकता यह है कि मुस्लिम वोट तो उनके घर के है। उन्हें नज़रंदाज़ करो, और वोट दूसरे समुदाय की हासिल करो, जो शायद इस चुनाव में कतई नहीं चलेगा। 
क्योकि नगर के लोगो, खासकर मुसलमानों ने अंजू अग्रवाल से सबक सीख लिया है। उन्होंने भी सेक्युलर बनकर मुस्लिमो की वोट हासिल करके चुनाव जीता और फिर बाद में भाजपाई हो गई। 
लोगो को उस समय बड़ा दुख हुआ था, इसलिए दोबारा दुख करने की मेरे ख्याल से मुसलमानों को गलती नहीं करनी चाहिए।
मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र मदीना चौक से रुड़की चुंगी की ओर जाने वाला रास्ता आज भी विकास की राह देख रहा है, जबकि इसी क्षेत्र ने अंजू अग्रवाल को बड़ी संख्या में वोट किया था। 
*नेताओ का अंदाज़ा लगाना मुश्किल इनका एक पाव सपा में दूसरा भाजपा तो कभी कांग्रेस में होता है।*
जीतने के बाद कहते है कि मुसलमानों ने हमे वोट नही किया था, उन्होंने वोट सपा या कांग्रेस को किया, कुल मिलाकर उनका अहसान अखिलेश पर है। हम पर नहीं, हमे वोट करते तो निर्दलीय करके दिखाए, इसलिए भटकने से बचिए, और ऑप्शन ढूँढिये, *सिर्फ इस गुमान में मत रहिए कि सपा के अलावा ओर चारा ही क्या है, यही सोचते सोचते आप बर्बादी की कगार पर जा पहुंचे।*
सबसे ज्यादा वोट आप करते हो लेकिन आपके मुस्लिम नेताओं को चुनाव तक मे पूछना सपा गवारा नही करती। क्योकि आप बिना सोचे, बिना समझे सपा को वोट कर रहे हो,  जिसकी मिसाल हाथी के दांत जैसी है, जो बाहर से कुछ और अंदर से कुछ और ही होते है। 
इन सेक्युलर का चौला ओढ़े प्रत्याशियों से अच्छा है कि आप सीधे भाजपा को ही वोट कर दे, ताकि बाद में पछताना न पड़े। 
आपकी लड़ाई में राकेश शर्मा कहा दिखे, आपके घर तोड़े गए, आप दुख दर्द में कहा खड़े दिखे, आपको अपनी लड़ाई खुद लड़नी है, इन नेताओं से उम्मीद रखना बंद करो। 
ये आपको अपने बराबर में बैठाना भी पसंद नहीं करते है, हा चापलूसी आप उनकी करो तो बहुत पसंद करते है। आपको नेता बनाना पसंद नहीं करते है, हा रिमोट कंट्रोल अपने हाथ मे रखकर आपको मोहरा बनाना जरूर पसंद करते है, क्या भूल गए सहारनपुर में इमरान मसूद की राजनीति खत्म करने का प्रयास करने वाली पार्टी कौन सी है। 
मुज़फ्फरनगर से मुस्लिम लीडरशिप खत्म करने वाली पार्टी कौन सी है?
क्या भूल गए मुस्लिम दाढ़ी टोपी वाले को मंच से धक्का देकर उतारने वाली पार्टी कौन सी है। 
क्या भूल गए भाजपा के दुश्मन मुसलमान कौन सी पार्टी की वजह से है। 
आपको प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री नही बनना, सरकार नहीं बनानी, यहां तक कि अब तो विधायक सांसद भी नही बनने की कगार पर हो, 
फिर क्यो भाजपा को हराने के चक्कर मे खुद को मिटाने पर तुले हो, भाजपा को हराने का टेंडर छोड़ दो, यह खुद अपनी वोटो से क्यो नही हराते,
आपको पता होना चाहिए ये जो सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े हुए नेता आपसे वोट मांगते है, इन्हें मौका मिले तो यह भाजपा में जाने से नहीं कतराएंगे, लेकिन वहां सब लोग एडजस्ट नहीं हो सकते इसलिए सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़कर इन पार्टी में नेतागिरी कर रहे है। ये सेक्युलरिज्म का चौला ओढ़े नेता आपके कांधे पर हाथ रख दे तो आप ऐसे खुश हो जाते है जैसे ज़िंदगी मे सब कुछ पा लिया हो, ये मत भूलो ये सिर्फ आपको भीड़ बनाने को आपके सर पर हाथ रखते है, लेकिन आपको नेता बिल्कुल भी बनाना नहीं चाहते, हा जो रात दिन इनके लिए नतमस्तक हो तो उसे नेता भी बना देते है लेकिन उसका कंट्रोल अपने हाथ मे रखते है ताकि वो आपकी आवाज न उठा सके, जो मन मे था लिख दिया, अंजाम की परवाह नही करता। इसके बाद धमकी भी आएगी और साजिश भी रची जाएगी लेकिन मैं न मौत से डरता हूँ और न ही जेल की चार दीवारी का खौफ रखता हूँ। विधायक दर्पण न्यूज मुज़फ्फरनगर, उत्तर प्रदेश से पत्रकार फरमान अब्बासी की रिपोर्ट ✍🏻*

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