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सच, साहस और सिदाक़त की मिसाल: मरहूम सलीम अहमद को यौमे-ए-पैदाइश पर ख़िराज-ए-अकीदत

कैराना की पाक सरज़मीं पर जन्मे, बेबाक और निडर पत्रकारिता के सिपाही मरहूम के यौमे-ए-पैदाइश के अवसर पर उन्हें पूरे अदब और एहतराम के साथ याद किया गया। इस मौके पर कांग्रेस की जिला उपाध्यक्ष सहारनपुर एवं भावी पालिका अध्यक्ष प्रत्याशी देवबंद ने ख़िराज-ए-अकीदत पेश करते हुए उनके पत्रकारिता जीवन और सामाजिक योगदान को नमन किया।

डॉ. शाज़िया नाज़ ने कहा कि मरहूम सलीम अहमद सिर्फ़ एक पत्रकार नहीं थे, बल्कि वे सच, साहस और ईमानदारी की ज़िंदा पहचान थे। उन्होंने अपने समाचार पत्र परवेज़ केसरी के ज़रिए आम आदमी की आवाज़ को बुलंदी दी और बिना किसी दबाव के जनहित से जुड़े मुद्दों को सामने लाते रहे। सत्ता और व्यवस्था की खामियों को उजागर करना उनकी निर्भीक पत्रकारिता की सबसे बड़ी मिसाल रहा।

उन्होंने कहा कि सलीम अहमद ने पत्रकारिता को महज़ पेशा नहीं, बल्कि एक मिशन के रूप में अपनाया। उस दौर में भी, जब सच लिखने की कीमत चुकानी पड़ सकती थी, वे पीछे नहीं हटे। उनकी कलम ने समाज के कमज़ोर और वंचित वर्ग को हौसला दिया और लोगों में अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा की।

डॉ. शाज़िया नाज़ ने आगे कहा कि कैराना की धरती को यह फ़ख़्र हासिल है कि उसने ऐसे जुझारू पत्रकार को जन्म दिया, जिसने पूरी ज़िंदगी सच्चाई के लिए संघर्ष करते हुए बिताई। उल्लेखनीय है कि मरहूम सलीम अहमद का इंतक़ाल 24 दिसंबर 2001 को हुआ, लेकिन उनके विचार, सिद्धांत और पत्रकारिता आज भी समाज को दिशा देने का काम कर रहे हैं।

अंत में उन्होंने मरहूम सलीम अहमद की मग़फिरत के लिए दुआ करते हुए कहा कि ऐसे बेबाक और निडर पत्रकार कभी भुलाए नहीं जाते—वे अपने काम, उसूलों और आदर्शों के ज़रिए हमेशा लोगों के दिलों में ज़िंदा रहते हैं।


संपूर्ण राजनैतिक समाचार पत्रिका “विधायक दर्पण” के लिए
सहारनपुर, उत्तर प्रदेश से पत्रकार ज़मीर आलम की खास रिपोर्ट

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