कैराना/दिल्ली। दिल्ली की सड़कों पर सोमवार को ऐसा नज़ारा देखने को मिला, मानो सत्ता के खिलाफ जन-युद्ध छेड़ दिया गया हो। एसआईआर के खिलाफ भड़का आक्रोश अब सियासी लपटों में बदल चुका है। इंडिया गठबंधन के सांसदों का विशाल जत्था, काले कानून की तरह थोपे गए एसआईआर के विरोध में संसद से चुनाव आयोग तक मार्च करता हुआ निकला। इस हुंकार में सबसे आगे थीं कैराना की तेज़तर्रार और बेबाक सांसद इकरा हसन, जिनकी आवाज़ ने सरकार के कानों में आग लगा दी।
"हमारी मांग बिल्कुल साफ है — वोटों की चोरी बंद हो, लोकतंत्र की हत्या बंद हो और एसआईआर नाम का यह काला कानून तुरंत रद्द किया जाए। सरकार यह भूल जाए कि जनता की चुनी हुई आवाज़ को दबाकर तानाशाही लंबे समय तक चल सकती है। हम डरने वाले नहीं हैं, झुकने वाले नहीं हैं और चुप रहने वाले नहीं हैं।"
"यह एसआईआर नहीं, असल में ‘सरकार का इमरजेंसी रूल’ है। इसको लाकर सत्ता विरोधी हर आवाज़ को कुचलने की साजिश की जा रही है। यह लोकतंत्र के सीने पर रखा गया पत्थर है, जिसे हम अपने हाथों से हटाकर फेंक देंगे।"
नारे गूंजे, माहौल गरमाया
मार्च के दौरान ‘तानाशाह मुर्दाबाद’, ‘लोकतंत्र ज़िंदाबाद’, ‘एसआईआर वापस लो’ और ‘चुनाव आयोग जागो’ जैसे नारे आसमान को चीरते रहे। जगह-जगह पुलिस की बैरिकेडिंग तोड़ते हुए सांसद आगे बढ़ते गए। राजधानी में माहौल इतना गरमा गया कि कुछ इलाकों में ट्रैफिक तक ठप हो गया।
विपक्ष का एलान- यह तो बस शुरुआत है
"तानाशाह सरकार यह जान ले, यह तो बस शुरुआत है। अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो अगला कदम देशव्यापी आंदोलन होगा। लाखों लोग सड़कों पर उतरेंगे और संसद से राष्ट्रपति भवन तक कूच करेंगे। हम न केवल एसआईआर को वापस कराएंगे बल्कि वोट चोरी करने वालों को जेल भेजेंगे।"
सरकार पर लोकतंत्र के खिलाफ षड्यंत्र का आरोप
विपक्षी दलों का आरोप है कि एसआईआर का इस्तेमाल विपक्षी नेताओं को फंसाने, आंदोलनों को तोड़ने और जनता के असली मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए किया जा रहा है। इसे "लोकतांत्रिक ढांचे पर हमला" और "संवैधानिक अधिकारों की हत्या" बताया गया।
राजनीतिक गलियारों में भूचाल
इस प्रदर्शन के बाद सत्ता और विपक्ष दोनों में हलचल तेज़ हो गई है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इकरा हसन जैसी नई पीढ़ी की सांसदों की सख्त बयानबाज़ी और सड़कों पर उतरने की रणनीति आने वाले चुनावों में खेल बदल सकती है। सरकार के खिलाफ आक्रोश का यह उबाल अगर इसी तरह बढ़ता रहा तो संसद से लेकर गांव-गांव तक माहौल बदलना तय है।
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