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“मौलाना नहीं, उस लिबास में गीदड़ है जनाब – रशीदी की सच्चाई जानिए”

लेखक – ज़मीर आलम | विशेष रिपोर्ट – विधायक दर्पण राष्ट्रीय राजनैतिक समाचार पत्रिका


आज के दौर में जब सोशल मीडिया सच्चाई और झूठ के बीच की दीवार को बहुत बारीक कर चुका है, तब लिबास और हुलिया देखकर किसी के किरदार का अंदाज़ा लगा लेना एक आम चलन बन गया है। खासकर ‘मौलाना’ जैसे सम्मानित शब्द को जिस तरह से हल्के में लिया जा रहा है, वह न केवल मुसलमानों के मज़हबी दर्जे का अपमान है बल्कि हमारे सामाजिक विवेक का भी पतन है।

किसी के सिर पर टोपी हो और चेहरे पर दाढ़ी हो, तो उसे ‘मौलाना’ कहना शुरू कर देना आज एक फैशन बन चुका है, जबकि असल मौलाना वो होता है जो समाज को रास्ता दिखाए, मजहब की रौशनी में इंसानियत का परचम लहराए। मौलाना वह है, जो अपने किरदार, व्यवहार, इल्म और तहज़ीब से लोगों को प्रभावित करे, ना कि किसी राजनीतिक पार्टी का मोहरा बनकर समाज में जहर घोले।

■ किस्सा रशीदी का – "लिबास मौलाना का, किरदार नालायक का"

हाल ही में एक ऐसा ही मामला सामने आया जिसमें एक शख्स, जो मौलाना जैसी पोशाक में था, उसने देश की एक प्रतिष्ठित महिला नेता के खिलाफ अभद्र टिप्पणी की। ये कोई और नहीं बल्कि मुलायम सिंह यादव की बहू और वर्तमान सांसद डिंपल यादव थीं, जिनकी सादगी, व्यवहार, संस्कार और गरिमा का सम्मान देश के हर नागरिक ने हमेशा किया है – फिर चाहे वो किसी भी धर्म या पार्टी से क्यों न हो।

डिंपल यादव – एक ऐसी महिला, जो न केवल समाजवादी पार्टी की वरिष्ठ नेता हैं, बल्कि देश के पूर्व रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बहू भी हैं। उनका आचरण हिंदुस्तानी तहज़ीब की मिसाल है। जब उनके खिलाफ इस तरह की घटिया टिप्पणी की गई तो सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक महिला का, एक भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि का अपमान हुआ।

■ यह कोई मौलाना नहीं – यह है आईटी सेल का किराए का एजेंट

जिसने भी डिंपल यादव को निशाना बनाया, वह एक तथाकथित "रशीदी" नामक शख्स है जो बीजेपी की आईटी सेल का पेड एजेंट है। उसे दिहाड़ी पर रखा गया है – एक दिन के 500 रुपये से लेकर 5000 रुपये तक मिलते हैं, इस बात पर कि वो टीवी पर या सोशल मीडिया पर आकर कितना ज्यादा अपमानित होगा, और मुस्लिम समाज को कितना ज़लील करवाएगा।

यह शख्स ना केवल इस्लाम की तौहीन कर रहा है, बल्कि मुसलमानों को बदनाम करने की साजिश का हिस्सा बन चुका है। यह एक राजनीतिक दल की साजिश के तहत मुसलमानों के लिबास में छिपे एजेंडे को बढ़ावा देता है, ताकि देश में नफरत फैलाई जा सके।

■ मुसलमानों और समाजवादियों से अपील

मैं  ज़मीर आलम किसी राजनैतिक/ गैर राजनैतिक पार्टी का समर्थक नहीं हूं और फिर भी एक लेखक के रूप में, तमाम मुसलमानों और समाजवादी साथियों से गुज़ारिश करता हूं कि इस शख्स का सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक बहिष्कार किया जाए। इसे किसी मजलिस, जलसे या प्रोग्राम में बुलाना तो दूर, इसके लिए दरवाज़े भी बंद कर देने चाहिए।
इसे ना "मौलाना" कहा जाए, ना "मुस्लिम प्रतिनिधि" समझा जाए। यह सिर्फ और सिर्फ एक किराए का गद्दार है, जो मुसलमानों के नाम पर अपनी जेब भर रहा है और मुसलमानों की ही साख को गिरा रहा है।

इसे मौलाना कहना खुद इस्लाम की तौहीन है।
इसे तो जूतों की माला पहनाकर, समाज के सामने इसका असली चेहरा उजागर किया जाना चाहिए।


■ भावनात्मक क्षमा याचना

अगर मेरी इस पोस्ट में कोई शब्द किसी को कड़वा लगे हों तो माफी चाहता हूं, क्योंकि जब बात एक महिला के सम्मान की हो, और वो भी ऐसी महिला जो सियासत में गरिमा और मर्यादा की प्रतीक हो, तब जज़्बात काबू में नहीं रहते। मेरा उद्देश्य किसी धर्म या विचारधारा का अपमान नहीं बल्कि उस चेहरों को बेनकाब करना है, जो धार्मिक पोशाक को अपने राजनीतिक स्वार्थों की ढाल बनाकर समाज को गुमराह करते हैं।


रिपोर्ट: ज़मीर आलम
विधायक दर्पण राष्ट्रीय राजनैतिक समाचार पत्रिका
📞 संपर्क: 8010884848
✉️ ईमेल: vidhayakdarpan@gmail.com
🌐 वेबसाइट: www.vidhayakdarpan.in

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