✍️ ज़मीर आलम
प्रधान संपादक, विधायक दर्पण राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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"जब किसी महिला सांसद का सम्मान सुरक्षित नहीं, तो आमजन की गरिमा की कौन करेगा रक्षा?"
कैराना लोकसभा क्षेत्र की सांसद इकरा हसन साहिबा के साथ एक प्रशासनिक अधिकारी (ADM) द्वारा किया गया दुर्व्यवहार न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि यह उस गिरते हुए संवैधानिक आचरण का प्रतीक है, जिसकी गूंज आज समूचे लोकतंत्र में सुनी जा रही है।
🧕 इकरा हसन: मर्यादा और सौम्यता की पहचान
जो लोग सांसद इकरा हसन को जानते हैं या उनके कार्यशैली से परिचित हैं, वे यह स्वीकार करते हैं कि वे हर परिस्थिति में सादगी, शालीनता और गरिमापूर्ण संवाद के लिए जानी जाती हैं।
उनका राजनीतिक व्यवहार पक्षपात या टकराव से दूर रहा है। चाहे किसी भी दल के अधिकारी या जनप्रतिनिधि हों, इकरा हसन ने सदैव संविधान और लोकतंत्र की मर्यादा का पालन किया है।
ऐसे में जब एक ADM स्तर के अधिकारी द्वारा उनके साथ सार्वजनिक दुर्व्यवहार किया जाता है, तो यह केवल एक सांसद का नहीं, पूरे लोकतांत्रिक ढांचे का अपमान है।
🚨 मामला केवल एक महिला सांसद का नहीं, बल्कि प्रशासनिक संवेदनशीलता का प्रश्न है
महिला सशक्तिकरण और सम्मान की बातें करना यदि व्यवहार में नहीं दिखता, तो ऐसे सारे नारे खोखले प्रतीत होते हैं। एक ADM का यह व्यवहार सिर्फ 'निंदनीय' नहीं, अत्यंत चिंताजनक है – क्योंकि वह एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति से किया गया व्यवहार है।
यह न केवल प्रशासनिक अनुशासन का हनन है, बल्कि यह महिला सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों पर खुला हमला भी है।
🗣️ मेरी प्रतिक्रिया – ज़मीर आलम, प्रधान संपादक, विधायक दर्पण
“मेरा इकरा हसन जी से कोई राजनीतिक संबंध नहीं है। मैं न तो उनके दल का समर्थक हूँ और न ही उनकी विचारधारा से जुड़ा हुआ। लेकिन एक जागरूक नागरिक और पत्रकार के नाते, मैं इस पूरे घटनाक्रम को लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी मानता हूँ।ADM जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी को यह याद रखना चाहिए कि सांसद जनता का प्रतिनिधि है, किसी पार्टी का नहीं। उसकी गरिमा पर हमला, संविधान पर हमला है।
प्रशासन को चाहिए कि वह इस प्रकरण की निष्पक्ष और त्वरित जांच करे तथा दोषी अधिकारी पर सख्त कार्रवाई की जाए – ताकि भविष्य में कोई भी सरकारी अधिकारी अपने संवैधानिक कर्तव्यों से विमुख होकर "अहंकार और पद के नशे में", किसी भी जनप्रतिनिधि का अपमान न कर सके।”
📣 जनाक्रोश और सामाजिक संगठनों की तीव्र प्रतिक्रिया
देशभर के कई सामाजिक संगठनों ने इस मामले में गहरी नाराज़गी जताई है। महिला संगठनों का कहना है कि यदि एक महिला सांसद के साथ ऐसा हो सकता है, तो सामान्य महिला नागरिक की स्थिति की कल्पना मात्र से सिहरन होती है।
यह समय है कि प्रशासनिक जवाबदेही को पुनर्परिभाषित किया जाए। सरकारी पदों पर बैठे अधिकारियों को यह सिखाया जाए कि लोकतंत्र में जनप्रतिनिधि का सम्मान करना कानूनी बाध्यता नहीं, नैतिक उत्तरदायित्व है।
🔍 आवश्यक प्रश्न:
- क्या ADM जैसे अधिकारी बिना किसी भय के, सांसद से अभद्रता कर सकते हैं?
- क्या महिला सांसद का अपमान, महिला सशक्तिकरण के नारों की धज्जियां नहीं उड़ाता?
- क्या अधिकारियों की जवाबदेही तय करने का कोई त्वरित और पारदर्शी तंत्र नहीं है?
- क्या यह आचरण संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का सीधा उल्लंघन नहीं है?
🧭 निष्कर्ष: "मर्यादा का संरक्षण ही लोकतंत्र की रक्षा है"
यह घटना केवल एक विवाद नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि यदि आज हमने लोकतंत्र के मूल स्तंभों – सम्मान, संवाद और संयम – की रक्षा नहीं की, तो आने वाला समय अधिकारों की जगह अराजकता की ओर ले जाएगा।
हमें उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश शासन, लोकसभा सचिवालय और भारत सरकार इस प्रकरण को गंभीरता से लेगी और उचित कार्रवाई के माध्यम से जनप्रतिनिधियों की गरिमा को बहाल करेगी।
📌 रिपोर्ट: ज़मीर आलम, प्रधान संपादक
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यदि आपके पास इस प्रकरण से जुड़ी कोई जानकारी, साक्ष्य या प्रतिक्रिया है, कृपया हमें संपर्क करें – लोकतंत्र की रक्षा में आपकी भागीदारी महत्वपूर्ण है।
"लोकतंत्र का सम्मान तभी सुरक्षित है, जब उसके प्रतिनिधि सुरक्षित हैं।"
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