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रालोद प्रमुख के रहमों करम पर टिका है पंकज मलिक का राजनीतिक भविष्य


रालोद प्रमुख के लिए आसान नहीं होगा पूर्व में दिए गए पिता व पुत्र द्वारा झटके उसको भूलना पंकज मलिक के पिता हरेंद्र मलिक पूर्व राज्यसभा सदस्य द्वारा राष्ट्रीय लोक दल प्रमुख चौधरी अजीत सिंह को उनको राजनीतिक कैरियर की शुरुआत में दिया गया था बड़ा झटका उनके मुख्यमंत्री बनने में बने थे रोड़ा, हरित प्रदेश की मांग को लेकर चलाए जा रहे आंदोलन में भी नहीं दिया था साथ, 2009 के लोकसभा चुनाव में भी हरेंद्र मलिक पर राष्ट्रीय लोक दल कि मुजफ्फरनगर लोकसभा से प्रत्याशी अनुराधा चौधरी को हराने में महत्वपूर्ण भूमिका की हुई थी चर्चा, 2010 मुजफ्फरनगर जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल समर्थित उम्मीदवार गौरव त्यागी को ऐन वक्त हरवाने में निभाई थी मुख्य भूमिका जिससे नाराज हुए रालोद सुप्रीमो, सब कुछ भुला कर रालोद प्रमुख नेता कार्यकर्ता एवं रालोद समर्थकों के द्वारा पंकज मलिक को वोट देना आसान नहीं होगा क्योंकि नहीं भूल पाए 2017 के विधानसभा चुनाव में पंकज मलिक द्वारा टिकट की नौटंकी, पंकज मलिक के लिए शामली विधानसभा भी नहीं होगी आसान क्योंकि गठवाला खाप के बाबा राजेंद्र मलिक निषाद निषाद राजवीर मलिक थानेदार की बीजेपी से नजदीकियां जगजाहिर है।

और इतना ही नहीं उनके मुख्य  विरोधी माने जाने वाले श्याम सिंह थांबेदार व रविंदर थबेदार को लेकर समाजवादी मुखिया से मुलाकात भारी पड़ सकती है। पंकज मलिक को चरथावल विधानसभा  शामली विधानसभा दोनों ही विधानसभा पर लोकदल वोटरों की संख्या बड़ी तादाद में है ऐसे में क्या पंकज मलिक को बचा पाएंगे रालोद वोटर अपने आप में बड़ा सवाल, सियासत के महारथी माने जाने वाले हरेंद्र मलिक इस बार आसान नहीं होगा अपने पुत्र को विधानसभा पहुंचाना क्योंकि चुनाव से ऐन वक्त उनके द्वारा कांग्रेस को छोड़कर साइकिल पर सवार होना वही उनकी चरथावल सीट पर मजबूती से रालोद द्वारा दावेदारी पेश करना वही उनकी पूर्व सीट शामली विधानसभा पर भी रालोद की दावेदारी उनकी चिंता बढ़ाने के लिए कम नहीं है।

आपको बता दें कि जहां 1984 में हरेंद्र मलिक ने लोक दल के टिकट पर खतौली से पहली बार विधानसभा पहुंचे थे वही उनके पुत्र 2007 में बघरा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में विजय हासिल कर लखनऊ का रास्ता किया था और इतना ही नई परिसीमन के बाद 2012 में शामली विधानसभा से चुने गए थे  विधायक तब कांग्रेस और रालोद का गठबंधन था जो कि सोचने वाली बात है पूर्व की सभी घटनाओं को 
भुलाकर रालोद प्रमुख चौधरी अजीत सिंह ने बखूबी अपने कार्यकर्ताओं पर दबाव बनाकर दिलाई थी वह लेकिन इस बार की सभी परिस्थितियां अलग , उस वक्त युवा चेहरा होने के नाते युवाओं में था पंकज को लेकर बड़ा उत्साह लेकिन अब वोटरों से दूरी 5 साल से शामली विधानसभा से

दूरी उधर चरथावल से दूरी और 2017 का प्रकरण कि टिकट की हां करके रालोद का टिकट ले लेना और इतना ही नहीं यदि शामली विधानसभा से चुनाव लड़ते हैं। तो निश्चित रूप से गठवाला खाप के बाबा राजेंद्र मलिक और  थांबेदार राजवीर मलिक की नाराजगी का भी सामना करना पड़ेगा क्योंकि उनका पहले से ही लगाओ बीजेपी की तरफ है ही ऊपर से उनके धुर विरोधी माने जाने वाले श्याम सिंह बाहावड़ी व रविंद्र चौधरी को साथ लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मिलना भारी पड़ेगा वही कांग्रेस छोड़ना भी भारी पड़ेगा क्योंकि कांग्रेस वोटर भी शहर में हार जीत की निर्णायक स्थिति में है। और यदि बात करें चरथावल की चरथावल में भी रालोद कार्यकर्ता से दिल मिला पाना इतना आसान नहीं होगा कि उसको वोट में तब्दील किया जा सके और चरथावल में सबसे बड़ा सिरदर्द साबित होने वाला है पूर्व ब्लाक प्रमुख एवं दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री मुकेश चौधरी जोकि पंकज मलिक के समाजवादी पार्टी ज्वाइन करने से आशय पर चला गया है । यदि जानकार सूत्रों की माने तो वह निश्चित रूप से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़ सकते चुनाव ऐसे में 2022 में पंकज मलिक के लिए लखनऊ पहुंचने की राह इतनी आसान नहीं होगी अब उनका राजनीतिक भविष्य रालोद प्रमुख जयंत चौधरी के रहमों करम पर निर्भर करता है कि वे उन्हें कौन सी सीट देते हैं आप लोग यह कहेंगे कि समाजवादी में हैं और जयंत चौधरी कैसे देंगे सीट यह सच्चाई है कि पंकज मलिक समाजवादी पार्टी में लेकिन आज के समय में अखिलेश जयंत की दोस्ती या गठबंधन कहिए किसी से छिपा नहीं वही शामली चरथावल पर मजबूती से दावा पेश किया जा चुका है।

ऐसे में जयंत चौधरी पर निर्भर करेगा कि वह कौनसी सीट पंकज के लिए छोड़ते हैं केवल सीट छोड़ने से ही काम नहीं चलेगा अपने मैं अपनी पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं एवं वोटरों की दिल भी साफ करने होंगे वही इतना कुछ होने के बावजूद समाजवादी कार्यकर्ताओं नेताओं से भी तालमेल बैठाना मलिक के लिए इतना आसान नहीं होगा क्योंकि क्योंकि इतने कम समय में किसी पार्टी की कार्यकर्ताओं एवं कार्यकारिणी से तालमेल बैठाना इतना आसान नहीं होता अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या रालोद प्रमुख सभी घटनाओं को भुलाकर दिल से लगा पाएंगे पंकज को चुनाव समाजवादी कार्यकर्ता एवं नेता लगा पाएंगे उनको अपने दिल से, जो भी होगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन वर्तमान में इतनी स्थिति स्पष्ट है। कि पंकज मलिक का राजनीतिक कैरियर अब केवल राष्ट्रीय लोक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी के रहमों करम पर निर्भर करता है। 

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