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नेपाल का भविष्य युवा क्रांति के हाथों: स्वामी स्वदेशानंद ब्रह्म गिरि की कड़ी प्रतिक्रिया और नई उम्मीद

नेपाल की राजनीति में बीते दिनों जिस तरह का उथल-पुथल देखने को मिला है, उसने न सिर्फ देश की सीमाओं के भीतर बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में चिंता की लहर पैदा कर दी है। निहत्थे आंदोलनकारी युवाओं पर गोलीबारी की घटना ने नेपाल सरकार की संवेदनहीनता और तानाशाही रवैये को उजागर कर दिया है।

अंतर्राष्ट्रीय संत बौद्धिक मंच नरेंद्र मोदी विचार मंच के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी स्वदेशानंद ब्रह्म गिरि महाराज ने इस घटना की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए कहा:

“नेपाल की ओली सरकार ने भ्रष्टाचार और तानाशाही से देश को आर्थिक संकट में धकेला है। अब जब युवा सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे, तब उन पर गोलियां बरसाई गईं। यह अमानवीय और दुर्भाग्यपूर्ण है।”


आंदोलन की पृष्ठभूमि

नेपाल के युवाओं और छात्रों ने सोशल मीडिया पर लगे बैन के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का आह्वान किया था। इस आंदोलन के लिए उन्होंने विधिवत अनुमति भी प्राप्त की थी। इसके बावजूद ओली सरकार ने आंदोलनकारियों पर खुलेआम हिंसा की, जिसमें कई युवाओं की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हुए।

नेपाल के राष्ट्रीय अध्यक्ष यवराज आचार्य ने भी इस घटना को नेपाल के लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे काला अध्याय बताया।


स्वामी स्वदेशानंद की मांगें

  1. घायलों का तत्काल इलाज कराया जाए।
  2. आंदोलन में शहीद युवाओं को “नेपाल रत्न” सम्मान दिया जाए।
  3. शहीद परिवारों को 5-5 करोड़ रुपये मुआवजा मिले।
  4. घायल युवाओं को 2-2 करोड़ रुपये की राहत राशि दी जाए।
  5. शहीद परिवार के किसी एक सदस्य को द्वितीय श्रेणी अधिकारी की नौकरी मिले।

युवाओं का उदय और नई राजनीति

स्वामी स्वदेशानंद का मानना है कि नेपाल में जिस तरह युवाओं ने एकजुट होकर सरकार की तानाशाही को चुनौती दी है, वह इस बात का प्रमाण है कि अब नेपाल की बागडोर युवाओं के हाथ में होगी।

उन्होंने कहा:

“अंतर्राष्ट्रीय संत बौद्धिक मंच नेपाल के युवाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है। आने वाले समय में संतों और बुद्धिजीवियों के सहयोग से नेपाल में युवाओं की सरकार बनेगी और यह देश एक बार फिर हिंदू राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने उदित होगा।”


नेपाल के मौजूदा राजनीतिक संकट की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

नेपाल ने पिछले दो दशकों में कई राजनीतिक परिवर्तन देखे हैं।

  • 2006 का जनआंदोलन: राजशाही से लोकतंत्र की ओर संक्रमण।
  • 2008: नेपाल को गणतंत्र घोषित किया गया और राजशाही का अंत हुआ।
  • 2015 का संविधान: नए संविधान ने लोकतंत्र को मजबूती दी, लेकिन कई विवाद भी खड़े हुए।
  • 2020-25 का दौर: सरकारें बार-बार बदलती रहीं, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी बढ़ती रही।

आज की स्थिति इस लंबी राजनीतिक अस्थिरता का ही परिणाम है, जिसने युवाओं को सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया।


निष्कर्ष

नेपाल का यह संघर्ष केवल एक सोशल मीडिया बैन या भ्रष्ट सरकार के खिलाफ विद्रोह नहीं है, बल्कि यह युवा शक्ति की पहचान और उनके नेतृत्व की ओर पहला कदम है। स्वामी स्वदेशानंद ब्रह्म गिरि और यवराज आचार्य का विश्वास है कि जल्द ही नेपाल का राजनीतिक इतिहास नई दिशा लेगा, जहां युवाओं और संतों की साझेदारी से एक नया नेपाल खड़ा होगा।


🖊️ विशेष रिपोर्ट — विधायक दर्पण
✍️ पत्रकार – ज़मीर आलम

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