लेखक: अलीहसन मुल्तानी
स्थान: क़स्बा बड़ौत, जिला बाग़पत, उत्तर प्रदेश
प्रकाशन: "विधायक दर्पण" राष्ट्रीय समाचार पत्रिका
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"हमने वक़्त देखा है रिश्तों का, अब रिश्ते वक़्त का इंतज़ार कर रहे हैं…"
राजनीति में संबंधों का मूल्य तब सबसे अधिक समझ आता है जब वक़्त कठिन हो। आज जब चौधरी इकरा हसन को खुलेआम अपमानित किया जा रहा है, अश्लील गालियों और अभद्र भाषा का शिकार बनाया जा रहा है, तब हम यह सवाल करने को मजबूर हैं – क्या यह वही समाजवादी विचारधारा है जिसके लिए चौधरी मुनव्वर हसन ने अपना जीवन खपा दिया था?चौधरी मुनव्वर हसन और मुलायम सिंह यादव: रिश्तों की एक राजनीति
समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और चौधरी मुनव्वर हसन साहब का रिश्ता महज़ राजनीतिक नहीं, पारिवारिक था। ये रिश्ता चौधरी चरण सिंह जी के ज़माने से चला आ रहा है, जब राजनीति की पाठशाला में मुलायम सिंह यादव जैसे नौजवान चौधरी चरण सिंह जी से सीखते थे।उसी दौर में चौधरी अख़्तर हसन (इकरा हसन के दादा) – जो कि गुर्जर समाज के लगभग 160 गांवों के सर्वमान्य प्रमुख माने जाते थे – के यहां मुलायम सिंह यादव का आना-जाना आम बात थी। यह वह दौर था जब राजनीति, रिश्तों की गरिमा और उसूलों की कसौटी पर खड़ी होती थी।
मुलायम सिंह यादव और मुनव्वर हसन: दो जिस्म, एक जान
मुनव्वर हसन साहब और मुलायम सिंह यादव जी के रिश्ते को कोई भी समझ सकता है जब सुने कि मुनव्वर हसन ने हर संघर्ष में मुलायम सिंह का साथ दिया। चाहे डीपी यादव से टकराव का मुद्दा हो या बसपा प्रमुख मायावती से सीधा वैचारिक मोर्चा – मुनव्वर हसन हमेशा समाजवाद और मुलायम के साथ खड़े रहे।इकरा हसन और अखिलेश यादव: एक भावनात्मक रिश्ता
इकरा हसन, जो मुनव्वर हसन साहब की बेटी हैं, उनके और अखिलेश यादव के बीच भी वही भावनात्मक रिश्ता है जो भाई-बहन का होता है। जब पिता समान नेता मुलायम और मुनव्वर ने एक साथ वर्षों तक समाजवाद की मशाल थामी, तो उनके बच्चों के बीच यह रिश्ता जन्मसिद्ध बन गया।लेकिन आज जब अखिलेश यादव विपक्ष में हैं और सत्ता में नहीं, तब भी उन्हें अपनी बहन के सम्मान की रक्षा के लिए खड़ा होना चाहिए। चुप रहना एक नेता को शोभा नहीं देता, एक भाई को तो बिल्कुल नहीं।
"हम गाली नहीं देते, लेकिन हमारी कलम जवाब देती है…"
जिस तरह से एक घटिया मानसिकता वाले व्यक्ति द्वारा चौधरी इकरा हसन को अभद्र भाषा में निशाना बनाया गया है, वह बेहद निंदनीय है। समाज में यदि किसी महिला को खुलेआम गालियां दी जाएं और उस पर नेता चुप रहें – तो वह समाज, समाज नहीं जंगल बन जाता है।हम चाहें तो उस व्यक्ति और उसके खानदान को ऐसे लफ़्ज़ों में ज़लील कर सकते हैं कि पीढ़ियों तक उसकी जबान कांपे। लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे – क्योंकि हमारी परवरिश, हमारा मज़हब, हमारी तहज़ीब हमें यह नहीं सिखाती।
अखिलेश यादव से सवाल – अब भी खामोश क्यों?
क्या एक बहन के सम्मान के लिए खड़ा होना इतना मुश्किल है? क्या अखिलेश यादव को अब भी इस बात का इंतज़ार है कि कोई और बोले? जब उनके पिता के लिए मुनव्वर हसन जी ने अपनी राजनीति दांव पर लगा दी थी, तब आज की यह चुप्पी अहसानफ़रामोशी जैसी प्रतीत होती है।भाई की ताक़त को दिखाइए अखिलेश जी!
योगेन्द्र राणा जैसे लोगों के सामने नपुंसक बनकर मत रहिए।
निष्कर्ष: रिश्तों को ज़िंदा रखिए, वरना राजनीति बेजान हो जाएगी
आज का लेख कोई सियासी भाषण नहीं, बल्कि एक रिश्ते का प्रतिकार है। हम चाहते हैं कि इकरा हसन को न्याय मिले, उनका सम्मान बहाल हो। साथ ही, समाज में यह संदेश भी जाए कि चाहे राजनीति किसी भी विचारधारा की हो, महिलाओं के सम्मान पर कोई समझौता नहीं हो सकता।लेखक परिचय:
अलीहसन मुल्तानी – पूर्व समाजवादी नेता, राष्ट्रीय लोक मंच के बड़ौत विधानसभा से पूर्व विधायक प्रत्याशी, सामाजिक चिंतक, और मुल्तानी समाज के सशक्त प्रतिनिधि।
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