हरियाणा की कमेरी जातियों का पीडीएस फ्रन्ट
वर्तमान आरएसएस-भाजपा शासन अनिवार्य रूप से पुरानी मनुवादी सामंती प्रणाली पर आधारित है, जिसमें सभी वंचितों और निर्बलों को हजारों साल तक सत्ता, धन और हैसियत से वंचित रखा गया था। इसीलिए आरएसएस-भाजपा सरकार का विकास भी मूलतः मनुवादी और परिवर्तन विरोधी और सामाजिक न्याय विरोधी विकास है।
दलितों, पिछडों, आदिवासियों व अल्पसंख्यकों को मजबूत करने और उसे प्रतिनिधित्व देने के दावे करने वाली सरकार की पूरी राज्य मशीनरी पर ब्राहमणवादियों और सामंती अगड़ों का कब्जा है, यह कब्जा उसी ब्राहमणवादी प्रणाली का है जो हजारों वर्षों से, धार्मिक और सामाजिक प्रतिबंधों के माध्यम से सारी दौलत और सत्ता को नियंत्रित करती आयी है, जब अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी तो वे कृषि भूमि के मालिक थे, जब अर्थव्यवस्था उद्योग प्रधान पंूजीवादी थी तो वे उद्योगों और संपूर्ण पूंजी के मालिक और पूरी अर्थप्रणाली के नीति निर्धारक भी, अब जबकि अर्थव्यवस्था सूचना प्रौद्योगिकी के आधार पर ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की ओर रूपांतरित हो रही है तो वे सूचना प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करने वाले संसाधनों और संस्थानोें के मालिक और प्रबंधक हैं।
मनुवादी शासन का शोषण आज सौ गुना अधिक महीन और क्रूर हो चुका है। इसके वर्तमान महीन और क्रूर शोषण की तुलना इतिहास के किसी भी काल से नहीं की जा सकती है। अब जबकि हम एक आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं मनुवादी आरएसएस-भाजपा शासन उत्पादन के सारे साधनों और साधनों को समन्वित एवं नियंत्रित करने वाली सारी धमनियों, यथा नौकरशाही, न्यायपालिका और पुलिस बल को पूरी तरह से अपनी जकड़ में ले रही है और उसके लिए कारपोरेट और धार्मिक नेता उसके पीछे खड़े मनुवादी सत्ता के इन तमाम उपकरणों को मजबूत कर रहे हैं।
आरएसएस-भाजपा सरकार का नारा ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास‘ बेमानी है, वे लोगों को सांप्रदायिक, जातीय आधार पर बांटकर राज सत्ता को अपने हाथों में रखने के अलावा कुछ भी नहीं कर रहे हैं। इसके विपरीत इस सरकार ने समाज की वास्तविक उत्पादक शक्तियों भूमिहीन मजदूरों, किसानों, गरीब किसानों, दस्तकारों व मजदूर वर्ग और उनकी भावी पीढ़ी के लिए अवसरों और संभावनाओं को खत्म करने का काम शुरू किया है। इस सरकार का पूरा ध्यान मनुवादी अगड़ों के मुट्ठी भर तबके के हितों को साधने पर ही रहा है। इसके लिए उन्होंने धार्मिक, जाति और अन्य विभाजन और ध्रुवीकरण से संविधान के शासन और लोकतंत्र की अखंडता को भी खतरे में डाल दिया है।
हम, एक ऐसी ब्राहमणवादी शासन व्यवस्था में हैं जहां देश के बहुमत उत्पादक तबके सदियों से अपने स्वाभिमान, अपने कल्याण और अपने स्वतंत्र व्यंिक्तत्व और अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं। देश की मिट्टी में अपने खून-पसीने से सींचकर एक-एक दाना पैदा करने वालों को भूखा रहना पड़ता है और सबको घर, कपड़ा और बर्तन देने वाले उत्पादक तबकों को उन्हीं के उत्पादों से वंचित रहना पड़ता है और उनके पैरों के नीचे की जमीन, छत और बदन के कपड़ों तक को उनसे छीना जाता है। और उन्हें अपने उत्पादन का हिस्सा मिलेगा कि नहीं इसे निर्धारित कौन करता है। इसे निर्धारित करता है अनुत्पादक लोगों का गिरोह और उस गिरोह की मनुवादी सामाजिक, राजनीतिक शासन व्यवस्था।
कौन हैं प्रमुख उत्पादक वर्ग?
दरअसल, जिन्हें इतिहास में अभी तक दलित, पिछड़े अथवा आदिवासी कहा जाता रहा है वे देश के प्रमुख उत्पादक वर्ग हैं। इन्हीं वर्गों में से खेत में अनाज पैदा करने वाले किसान शामिल हैं, खेत में मजदूरी करने वाले अथवा शहरी कारखानों में मजदूरी करने वाले मजदूर शामिल हैं, बर्तन बनाने वाले, इमारतें खड़ी करने वाले मिस्त्री और मजदूर शामिल हैं, धनवान लोगों के घरों के सेवक, उनके दैनिक नित्य कर्म को सुचारू रूप से संचालित करने वाले कौन हैं, यही हैं। यही एक ऐतिहासिक विडंबना है कि जो दुनिया की हर उत्पादक गतिविधि को संचालित करते हैं वहीं पिछड़े वर्ग अथवा वंचित कहलाते हैं और पूरे इतिहास में जो सबसे अधिक अनुत्पादक और निक्कमे हैं, वो अगड़े हैं शासक हैं।
अब समय आ गया है कि देश के इन उत्पादक वर्गों को दलित अथवा पिछड़ा नहीं समाज के प्रमुख उत्पादक वर्गों के रूप में पहचाना जाए और वो अपनी उचित हिस्सेदारी के लिए लड़ाई छेड़ें।
-आरक्षण को लागू करने और निगरानी के लिए संवैधानिक दर्जा प्राप्त आरक्षण क्रियान्वयन और निगरानी आयोग का गठन करना और प्रत्येक जिले में उसकी ब्रांचें गठित करना।
-जाति जनगणना को एक मुहिम की तरह चलाना।
-जाति जनगणना के नतीजों के अनुसार वंचित जातियों की संख्या के अुनसार आरक्षण को बढ़ाना, जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी के आधार पर।
-पिछली सरकारों द्वारा शुरू किये गये निजीकरण को देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण के लिए संघर्ष छेड़ना।
-प्राइवेट स्कूलों में पूर्व में लागू 134ए को बहाल करवाना और साथ ही स्कूलों की एसएमसी में दलित, पिछड़ों के प्रतिनिधित्व का सुनिश्चित करवाना।
-सभी प्राइवेट अस्पतालों और नर्सिंंग होम्स में भी ईडब्ल्यूएस के लिए इलाज का कोटा तय करने का पक्का इंतजाम करवाना।
-पिछड़े, दलित और कमजोर तबकों के लिए आईटी शिक्षा के द्वार खोलने के क्रम में हरियाणा में उन तबकों के लिए विशेा महात्मा ज्योतिबा फूले आईटी विशेष विष्वविद्यालय बनाना और प्रत्येक जिले में उससे संबधित आईटी कालेज खोलना।
-देश की अर्थव्यवस्था के प्रत्येक सेक्टर कृषि, उद्योग, सेवा क्षेत्र में अपनी संख्या के अनुसार बराबर हिस्सेदारी के लिए निर्णायक संघर्ष छेड़ना।
-सरकार निजीकरण के माध्यम से आरक्षण की व्यवस्था को धीरे धीरे खत्म करने पर उतारू है। ठेका प्रथा को समाप्त करवाना और उसकी जगह पक्की नियमित नौकरियों की भर्ती करना। जब तक ठेका प्रथा नहीं खत्म हो जाती उस समय तक के लिए संविदा अथवा ठेके की नौकरियों में भी आरक्षण का प्रावधान करना।
-प्राकृतिक और राष्ट्रीय संसाधनों के बंटवारे की समीक्षा करते हुए वंचित तबकों की संख्या के अनुपात में अपनी बराबर हकदारी के लिए निर्णायक आंदोलन खड़ा करना।
-बेरोजगारी के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन खड़ा करना।
-हरियाणा राज्य के विभिन्न विभागों में खाली पड़े स्थानों को तुरंत भरना।
-भाजपा के सत्तासीन होने के बाद योजनाबद्ध ढ़ंग से वंचित तबकों को हाशिये पर धकेले जाने और उनके मौके छीनने की ब्राहमणवादी साजिशों को बेनकाब करना।
-संघर्ष के लिए सभी जनवादी, धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील ताकतों को एक मंच पर लाना और एक निर्णायक संघर्ष की शुरूआत करना।
दीर्घकालिक लक्ष्य
-विकास का नेतृत्व कर रही सूचना प्रौद्योगिकी की क्रान्ति से प्रमुख उत्पादक शक्तियों को जोड़ना और विकास की नेतृत्वकारी भूमिका में लाना।
-सभी प्रकार के सामाजिक अन्याय को समूल नष्ट करना।
-लैंगिक समानता के ध्येय को एक जनान्दोलन में बदलना।
-किसी भी प्रकार के क्षेत्रीय भेदभाव को मिटाकर एकसमान राष्ट्रीय दृष्टिकोण का निर्माण करना
-देश में एकसमान और तर्क आधारित वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली का निर्माण और क्रियान्वयन।
-देश के हर नागरिक को मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना।
‘‘समतामूलक हरियाणा, शक्तिशाली हरियाणा, विकसित हरियाणा‘‘ विधायक दर्पण न्यूज, सोनीपत, हरियाणा उत्तर प्रदेश से पत्रकार हरीश मल्होत्रा की रिपोर्ट
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8010884848
Good
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