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पश्चिम बंगाल तक जाकर भाजपा का विरोध करने वाले राकेश टिकैत अब यूपी चुनाव में चुप क्यों


राकेश टिकैत की चुप्पी क्षेत्र में बनी चर्चा का विषय,आय से अधिक संपत्ति की जांच का है प्रकरण या फिर बीजेपी से कम नहीं हुआ मोह, इसी चुप्पी से उठने लगे तीन कृषि कानूनों विरुद्ध चल रहे आंदोलन समाप्ति मैं राकेश टिकैत की भूमिका पर भी सवाल, आंदोलन  समाप्ति के दौरान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव युद्धवीर एवं गृहमंत्री के बीच अनेकों दूर की हुई वार्ताएं बनी थी समाचार पत्रों की सुर्खियां, अब तक भी वादे पर खरे नहीं उतरे केंद्र सरकार और ऐसे में चुनाव के दौरान फिर भी चुप क्यों है राकेश टिकैत, राकेश टिकैत की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है

पूर्व में दो बार करवा चुके हैं जमानत जप्त , वही पहले सिसौली में गठबंधन प्रत्याशी को सिंबल देना और समर्थन की घोषणा करना वही बाद में समर्थन की घोषणा को आशीर्वाद में बदल देना भी क्षेत्र में बना है बड़ी चर्चा का विषय, आज वह किसान व कार्यकर्ता दुविधा में जो किसान आंदोलन के चलते बीजेपी नेताओं से कर बैठे किनारा, वही भारतीय किसान यूनियन का बीजेपी नेताओं से लगाओ ऐसे किसान नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के  लिए बना पीड़ा का कारण, सबसे बड़ा सवाल कि नहीं तो बीजेपी के उम्मीदवारों का विरोध कर पा रहे हैं ने ही गठबंधन द्वारा दिए गए ऐसे प्रत्याशियों को टिकट जिनका किसान आंदोलन से दूर-दूर तक नहीं है वास्ता उनका भी नहीं कर पा रही विरुद्ध आखिर ऐसा क्यों, जानकार सूत्रों की माने तो शामली में तो एक ऐसे कैंडिडेट को टिकट दिला गया है गठबंधन से जो कल तक बीजेपी में रहकर करता था कानूनों की तरफदारी इतना ही नहीं रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की लोकसभा में हार में भी थी मुख्य भूमिका चौधरी साहब की हार के बाद मिठाई बांटकर किया था नृत्य ऐसे उम्मीदवार का भी नहीं कर पाए विरोध, आप क्षेत्र प्रदेश ही

  नहीं पूरे देश के किसानों को इंतजार कि आखिर कब टूटेगी राकेश टिकैत की चुप्पी, कब उतरेंगे बीजेपी के विरुद्ध चुनाव प्रचार में,  आखिर कब बीजेपी को हराने के लिए आगे आएंगे राकेश टिकैत, क्या राकेश टिकैत भूल गए उन 700 किसानों का बलिदान, या भूल गए गृह राज्य मंत्री के पुत्र क्यों किसानों को रूम की वह गाड़ी,  या 700 किसानों के बलिदान पर भारी पड़ गई संजीव बालियान में बीजेपी नेताओं से यारी, ना जाने इस किसान आंदोलन के चलते कितनों ने अपना रोजगार गमाया कितनों ने नौकरी कितनों ने अपनों को खोया और कितनों ने समय बर्बाद कर अपना धन तक इस आंदोलन में लगा यार ऐसे में जब वक्त आया

बीजेपी को सबक सिखाने का तो किसान नेताओं की चुप्पी अपने आप में एक बड़ा सवाल छोड़ जाती है जो कि आज क्षेत्र में बड़ी चर्चा का विषय बना हुआ है। किसान आंदोलन के दौरान लंबे लंबे भाषण देने वाले एवं किसान आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने वाली चुप क्यों है खाप पंचायतें, ऐसे प्रत्याशी का साथ देने में लगी खाप पंचायतें जो कल तक करते थे किसान आंदोलनों का पक्ष आखिर इस साथ के पीछे का क्या है राजआज जो खाप चौधरी लगे हैं ऐसे प्रत्याशियों के प्रचार में जो कल तक करते थे किसान आंदोलन का विरोध इससे उन कैंडिडेट ओं की काबिलियत कहेंगे या कहेंगे गांधी जी का जलवा।

@Vidhayak Darpan

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