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मूलभूत अधिकार क्या होते हैं ???


ऐसे अधिकार जिनके  बिना जीवन जीना संभव नहीं हो वे अधिकार जीवन के मूलभूत अधिकार कहे जाते हैं,और ऐसे अधिकार हैं~ शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, रोटी ,कपड़ा और मकान....रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार हर नागरिक के जीवन की मूलभूत जरूरतें हैं इनके अभाव में कोई भी नागरिक अपना जीवन नहीं जी सकता है, और ना ही अपना समुचित विकास कर सकता है। क्योंकि हर नागरिक को अपनी भूख मिटाने के लिए रोटी चाहिए अपना तन ढकने के लिए कपड़ा चाहिए और रहने के लिए मकान चाहिए यदि वह मानवीय गरिमा के साथ जीना चाहता है तो उसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार भी चाहिए। लेकिन विडंबना इस बात की है कि भारत के संविधान में जीवन के वास्तविक मूल अधिकारों को कोई जगह नहीं दी गई और मूल अधिकारों के नाम पर हमारे साथ संविधान निर्माताओं ने धोखा किया एक ऐसा धोखा जिसे देश के नागरिक समझ ही नहीं रहे हैं। संविधान के भाग 3 में अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक नाम मात्र के मूल अधिकार दिए गए हैं

~अनुच्छेद 12 राज्य की परिभाषा बताता है, अनुच्छेद 13,14 में मूलभूत सिद्धांत हैं (इनमें कोई अधिकार नहीं है। अनुच्छेद 15 और 16 राज्य के लिए निर्देश हैं कि वह अपने नागरिकों के लिए शिक्षा और नौकरियों में चाहे तो  प्रावधान कर सकता है.....अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत करता है और उसे दंडनीय बनाता है, इस अनुच्छेद में संविधान निर्माताओं ने बड़ा ही संयंत्र किया है अस्पृश्यता जिस कारण से पैदा हो रही है उस कारण का निवारण नहीं किया अस्पृश्यता के पैदा होने का मूल कारण है जाति और जाति को खत्म नहीं किया बल्कि अस्पृश्यता को दंडनीय घोषित किया...वैसे यह हमारा कोई अधिकार नहीं है यह एक दंडात्मक प्रावधान है जैसे दंडात्मक विधि में होना चाहिए था ना कि संविधान के मूल अधिकारों में अनुच्छेद 18 में उपाधियों का अंत किया गया है फिर भी सरकार के द्वारा धड़ाधड़ उपाधियां बांटी जा रही हैं, आम नागरिकों को इस अनुच्छेद से किसी प्रकार का कोई फायदा नहीं है न ही यह अनुच्छेद किसी नागरिक को किसी प्रकार का कोई अधिकार प्रदान करता है। अनुच्छेद 19 में हमें वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिली हुई है...किस अनुच्छेद में हमें स्वतंत्रता नाम मात्र के लिए एक हाथ से दी गई है तो दूसरे हाथ से छीन ली गई है,यानी अनुच्छेद 19 में जिसे हम मूल अधिकार समझ रहे हैं वे सरकार के रहमों करम पर हैं सरकार चाहे तब उन पर रोक लगा सकती है। वैसे स्वतंत्रता शर्तों के अधीन नहीं होती जैसे ही स्वतंत्रता पर शर्तें लगती है वह स्वतंत्रता परतंत्रता में बदल जाती है।

अनुच्छेद 20~ इस अनुच्छेद का लाभ हमें तभी मिलेगा जब हम किसी अपराध में फंस जाएंगे इससे पहले इस अनुच्छेद का हमें कोई लाभ नहीं है, अनुच्छेद 21~ अनुच्छेद 21 कहता है कि यदि किसी भी व्यक्ति की प्राण और दैहिक स्वतंत्रता को सरकार चुनना चाहती हैं तो वह विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से ही छीन सकती है अन्यथा नहीं। यह अनुच्छेद भी अपराधियों के लिए है । यह हमें कोई अधिकार नहीं देता है। अनुच्छेद 22~ गिरफ्तारी से संरक्षण ~इस अनुच्छेद का लाभ ज्यादातर अपराधियों और अपराध के आरोपियों को मिलता है....अनुच्छेद 23 और 24 में दंडात्मक प्रावधान है जिससे हमें किसी भी प्रकार का कोई मूल अधिकार नहीं मिलता है। अनुच्छेद 25 से लेकर 28 तक धार्मिक आजादी दी गई है जिसे मूल अधिकारों में कतई नहीं होना चाहिए था लेकिन संविधान निर्माताओं ने देशवासियों के साथ धोखा करके इसे मूल अधिकारों में को रख दिया है। अनुच्छेद 29 और 30 में अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक अधिकार दिए गए हैं। (जो कोई मूल अधिकार नहीं है।) अनुच्छेद 31 में संपत्ति को मूल अधिकार घोषित किया गया था जिसे बाद में हटा दिया गया, अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है

~यह अधिकार देखने में तो बड़ा सुंदर लगता है लेकिन हकीकत में यह षड्यंत्र है अगर हमारे खिलाफ कोई छोटा से छोटा अपराध हो जाता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई करने की प्रक्रिया बहुत सरल है यदि हमारे कथित मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो इसकी प्रक्रिया बड़ी जटिल है आपको सुप्रीम कोर्ट ही जाना पड़ेगा,अमीर आदमी सुप्रीम कोर्ट में आसानी से जा सकता है लेकिन गरीब आदमी सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक नहीं पहुंच सकता है। (अनुच्छेद 32 से ही अंदाजा लगा सकते हैं कि जो भी मूल अधिकार हैं वे अमीरों के लिए हैं गरीबों के लिए नहीं) मूल अधिकारों को लागू कराने की प्रक्रिया बहुत सरल होनी चाहिए थी यदि किसी व्यक्ति के मूल अधिकार का उल्लंघन हो तो पुलिस थाने में जाकर के f.i.r. कराएं या अपने समीप के किसी कोर्ट में जाकर अर्जी दे लेकिन संविधान निर्माताओं ने इस प्रकार की व्यवस्था मूल अधिकारों को लागू कराने के लिए नहीं की, अनुच्छेद 33,34, 35 में भी नागरिकों को किसी प्रकार का मूल अधिकार नहीं मिलता है। संविधान के भाग 3 में जो कुछ भी दिया है वह राज्य के लिए निर्देश है......अनुच्छेद 12 से लेकर 35 तक नागरिकों का कोई भी अधिकार नहीं है नागरिकों के मूल अधिकार होने चाहिए थे शिक्षा,स्वास्थ्य, रोजगार,रोटी कपड़ा और मकान। सरकार हर नागरिक को निशुल्क शिक्षा प्रदान कराती, निशुल्क इलाज की व्यवस्था कराती और सभी नागरिकों को रोजगार की गारंटी देती तो हर नागरिक अपने रोटी, कपड़ा और मकान का भी इंतजाम कर लेता लेकिन विडंबना इस बात की है कि संविधान निर्माताओं ने जीवन से जुड़े हुए मूलभूत अधिकारों को संविधान में कोई जगह प्रदान ही नहीं की, जिसे हर नागरिक को समझना चाहिए।नोट~ मूल अधिकार और अल्पसंख्यक समुदाय तथा कबायली क्षेत्रों की समिति के अध्यक्ष सरदार बल्लभ भाई पटेल थे, इसी समिति ने संविधान के मूलभूत अधिकारों को तय किया था। सरदार दिनेश सिंघ एलएल.एम.  

@Vidhayak Darpan

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