राजनीति में बड़े मुकाम पर पहुंचने की चाहत के साथ साथ अधिकतर राजनैतिक लोग चर्चा में भी मुसलसल रहना पसंद करते हैं। मीडिया की सुर्खियां बने रहने की कोशिश रहती हैं। वो बात अलग है कि सुर्खिया बटोरने में नेताओ को किसी भी हद तक गिरने में कोई शर्म महसूस नहीं होती, लेकिन जनपद मुज़फ्फरनगर की एक राजनैतिक परिवार की कहानी इससे जुदा हैं। एक ऐसा राजनैतिक परिवार जिनका मुज़फ्फरनगर व शामली दोनों जिलों में बराबर वजूद हैं, जिन्होंने कैराना लोकसभा चुनाव में एक बार पूर्व सांसद मुन्नवर हसन को भी शिकस्त दी थी, जो एमपी विधायक, मंत्री तक का सफर तय करने के बावजूद भी सादगी की मिसाल बने हुए हैं, जिनका अपने गृह कस्बे में लोगो की नज़र में किसी राजा-महाराजा से कम दर्जा नहीं,
जी हां हम बात कर रहे है । शामली जिले के कस्बा गढ़ीपुख्ता के मूल निवासी पूर्व सांसद अमीर आलम खान व उनके पुत्र पूर्व विधायक नवाजिश आलम खान की।
अमीर आलम खान से पहले उनका परिवार राजनीति से कोसो दूर था। क्रिकेट के मैदान से अमीर आलम खान की राजनीति की शुरुआत हुई थी।
स्व चौधरी अजित सिंह व अमीर आलम खान
कहते है कि हर बुराई में एक अच्छाई होती हैं,
पूर्व विधायक सोमाश प्रकाश के दौर में एक टूर्नामेंट में मुख्य अतिथि बनकर आये एक विधायक ने अमीर आलम खान की टीम को जीतने के बावजूद भी हरा दिया तो वहीं से अमीर आलम ने क्रिकेट का मैदान छोड़ राजनीति के मैदान में कदम रखा।
सन 1985 में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय दलित किसान कामगार के टिकट से थानाभवन विधानसभा से चुनाव लड़े और विधायक बने।
1989 में जनता पार्टी के टिकट से मोरना विधानसभा से चुनाव जीते और परिवहन मंत्री बने। 1996 में थानाभवन विधानसभा से फिर से चुनाव लड़े और जीते, सपा सरकार में उत्तर प्रदेश वक्फ बोर्ड के चैयरमेन बनाये गए। सन 1999 में कैराना लोकसभा से मुनव्वर हसन को शिकस्त देकर सासंद बने।
2006 में राज्यसभा सांसद बने। इसके बाद अमीर आलम खान के पुत्र नवाजिश आलम खान ने 2012 में बुढ़ाना विधानसभा से अपनी किस्मत आज़माई। नवाजिश आलम खान चुनाव जीते, लेकिन 2013 के दंगे के बाद लगातार सपा हाई कमान उन्हें अनदेखा करने लगा, 2013 के दंगे दौरान खान परिवार को बदनाम करने की साजिश भी रची गई, जनपद के कुछ नेताओं ने उनकी छवि को सपा हाईकमान के समक्ष गलत दर्शाया, लेकिन कोई भी आरोप साबित न हो सका। यही वजह है कि 2013 में बिजनौर लोकसभा प्रत्याशी रहे अमीर आलम खान का टिकट भी काट दिया गया था। लगातार सपा हाई कमान द्वारा नज़र अंदाज़ करने पर अमीर आलम व नवाजिश आलम ने सपा को अलविदा कह दिया, और बसपा का दामन थामा। 2017 में नवाजिश मीरापुर से चुनाव लड़े और तीसरे नम्बर पर रहे। सन 2018 में गढ़ीपुख्ता में जयंत चौधरी की मौजूदगी में दोनों पिता-पुत्र राष्ट्रीय लोकदल में शामिल हुए।
पूर्व विधायक नवाजिश आलम
मेरे एक सवाल पर नवाजिश आलम खान ने कहा कि हम राष्ट्रीय लोकदल में आपसी भाईचारे का संदेश देने के लिए शामिल हुए, 2013 के दंगे में जो खाई मुस्लिम और जाटों के बीच पैदा हुई थी, ताकि उसका खात्मा हो सके।
अमीर अलाम खान हाल ही में नवाब अज़मत अली खां वक्फ के सेक्रेटरी भी बनाये गए हैं। पूर्व सांसद अमीर आलम खान ने बताया कि उन्हें हिन्दू-मुस्लिम दोनों का बराबर सहयोग मिला।
इसमे कोई शक नहीं कि 35 वर्ष की राजनीति में खान परिवार की बेदाग छवि रही हैं।
ये बात अलग है कि पश्चिम यूपी की राजनीति में कोतवाल को डांटने व अधिकारियों को फटकारने वाली राजनीति पसंद की जाती है, मगर अमीर आलम खान व नवाजिश आलम खान की जुबां में हमेशा नरमी रही हैं, प्रोफेशनल तरीके से तहज़ीब के दायरे में वो अधिकारियों से जनता के लिए सिफारिश करते अक्सर देखे गए हैं। ये जब है तब उन्हें राजनीति में क्या कुछ हासिल नहीं हुआ।
उनका कस्बा गढ़ीपुख्ता में लोग उन्हें किसी राजा से कम नहीं मानते, सरकार चाहे किसी की हो, पर गढ़ीपुख्ता की सरकार खान परिवार की कायम रहती हैं। वहां की जनता उनके एक इशारे पर सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहती हैं।
ज्यादातर नेताओ के प्रभावशाली क्षेत्र में देखा जाता है कि वो चाहे किसी भी मुकाम पर पहुंच जाए पर अपने क्षेत्र का जनप्रतिनिधि भी अपने परिवार से ही बनवाता हैं, अन्य क्षेत्र के योग्य लोगो को मौका नहीं देते, लेकिन अमीर आलम की जिंदा दिली की मिसाल यह भी है कि गढ़ीपुख्ता में चैयरमेन अपने परिवार से नहीं बल्कि क्षेत्र के योग्य लोगो को ही बनवाते हैं। चाहे हिन्दू हो या मुसलमान।
गढ़ीपुख्ता में श्रीपाल जैन, राधगिरी, विजय गिरी, रफीउल्ला खा चैयरमेन रहे, मौजूदा वक्त में अलीहसन अंसारी चैयरमेन हैं।
गढ़ीपुख्ता के बुजुर्ग बताते है कि यहां चैयरमेन प्रत्याशी कौन है ये नहीं देखा जाता, बल्कि अमीर आलम के चेहरे पर वोट दी जाती हैं।
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