दिनांक 29 जुलाई 2025, लखनऊ
घटनाक्रम—एक नज़र
मौलाना साजिद रशीदी ने समाजवादी पार्टी (सपा) की सांसद डिंपल यादव पर एक निजी समाचार चैनल के पैनल डिस्कशन के दौरान आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। लाइव प्रसारण में ही मौजूद सपा नेता कुलदीप भाटी ने मौलाना की बात पर कड़ी आपत्ति जताते हुए स्टूडियो में उन्हें थप्पड़ रसीद कर दिया। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम ने प्रदेश की राजनीति में भूचाल ला दिया है।
‘छुट भैय्या’ से ‘बाहुबली’ तक!
सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है कि मौलाना की धार्मिक वेश‑भूषा ने कुलदीप भाटी के “साहस” को दो‑क़दम आगे बढ़ा दिया। कुछ यूज़र तंज कस रहे हैं—
“टिप्पणी करने वाला ‘मौलाना’ था, इसलिए थप्पड़ चल गया; वरना योगेन्द्र राणा जब‑जब सांसद इक़रा हसन पर अमर्यादित भाषा इस्तेमाल करता है, तब सपा खेमे में ऐसी हिम्मत क्यों नहीं दिखती?”
दोहरे मापदंड का सवाल
बात केवल एक थप्पड़ की नहीं, बल्कि दोहरे मानदंड की है।
- योगेन्द्र राणा नामक स्वयंभू ‘फ़ायरब्रांड’ लगातार सपा सांसद इक़रा हसन के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक बयान देता रहा है।
- अभी तक किसी सपा कार्यकर्ता या नेता ने उसके ख़िलाफ़ ऐसी आक्रामक प्रत्यक्ष प्रतिक्रिया नहीं दिखाई।
- राजनीतिक पंडित इसे “चुनिंदा आक्रोश” या “मौक़े का मिज़ाज” कह रहे हैं; पार्टी नेतृत्व पर “निर्वाचित और स्वतः‑भक्त नेता के बीच भेदभाव” का आरोप भी लग रहा है।
सियासी बयानबाज़ियाँ
- सपा प्रवक्ता ने भाटी को “भावनाओं में बह गया कार्यकर्ता” बताते हुए घटना को “स्वाभाविक मानवीय प्रतिक्रिया” कहा।
- भाजपा प्रवक्ताओं ने तंज कसा—“सपा का असली चेहरा हिंसा है; बहस नहीं, थप्पड़ ही उनका तर्क है।”
- Meanwhile, मौलाना साजिद रशीदी ने एक वीडियो जारी कर कहा, “मैंने महज़ राजनीतिक टिप्पणी की थी; शरीफ़ पार्टी के नेता ने गुंडागर्दी दिखाई।”
मीडिया एथिक्स बनाम सनसनीख़ेज़ी
टीवी चैनल पर लाइव हिंसा ने न्यूज़रूम सुरक्षा प्रोटोकॉल पर भी सवाल खड़े किए:
- पैनलिस्ट की स्क्रीनिंग और सेक्योरिटी ब्रिफ़िंग कितनी माकूल है?
- क्या टीवी चैनल केवल टीआरपी के लिए अति‑उत्तेजक बहसें करवा रहे हैं?
- लाइव हमला दर्शकों को गलत संदेश देता है कि “हिंसा बहस का वैध जवाब” है।
आगे का रास्ता
- कानूनी पहलू: न्यूज़ स्टूडियो में मारपीट दंडनीय अपराध है; आईपीसी की धारा 323 (साधारण मारपीट) और 504 (उकसावे) लागू हो सकती है।
- पार्टी अनुशासन: सपा नेतृत्व को तय करना होगा कि ऐसी तीखी व्यक्तिगत कार्रवाइयों पर दृढ़ आचार‑संहिता लागू की जाए।
- लोकतांत्रिक विमर्श: मतभेदों को तर्क, तथ्य और शालीनता से न सुलझाकर जब थप्पड़ से हल किया जाएगा, तब लोकतांत्रिक संवाद कमजोर पड़ेगा।
निष्कर्ष
सियासत में शब्दों की गरिमा और विचारों की बहस ज़रूरी है। व्यक्तिगत आस्था‑सम्बद्ध पहचान या महिला‑विरोधी बयानबाज़ी—दोनों ही निंदनीय हैं। मगर जवाब में हिंसा भी उतनी ही अलोकतांत्रिक है। सवाल यह है कि सपा सिर्फ़ चर्चित चेहरों के अपमान पर ही गरजती‑बरसती क्यों नज़र आती है? क्या हर महिला प्रतिनिधि के सम्मान की लड़ाई समान रूप से लड़ी जाएगी? आने वाले दिन बताएँगे कि यह थप्पड़ तात्कालिक था या पार्टी‑नीति में बदलाव की दस्तक।
📌 रिपोर्टर: ज़मीर आलम
🎥 कैमरामैन: —
📞 8010884848
🌐 www.vidhayakdarpan.in
📧 vidhayakdarpan@gmail.com
#VidhayakDarpan #HindiEnglishNews #PoliticalBlog #SPControversy #MediaEthics
No comments:
Post a Comment