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दिल्ली/लखनऊ....पिछले एक सप्ताह से लखनऊ और दिल्ली में बीजेपी के भीतर हलचल बहुत तेज है। कुछ ऐसा अनापेक्षित चल रहा है जो अब तक नहीं हुआ।


2017 से यूपी की सत्ता में आयी बीजेपी में पहली बार ऐसी घटनाएं हो रही हैं जो बताती हैं पार्टी को लग गया है की वक़्त रहते उत्तर प्रदेश में नहीं चेते तो हश्र महाराष्ट्र, राजस्थान, छतीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसा न हो जाए। बीजेपी संगठन और यूपी सरकार के बीच भयंकर मतभेद है। ऊपर से तो सब ठीक दिखता है लेकिन अंदर दोनों पक्ष एक दूसरे के प्रति बैर भाव रखते हैं। कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का अपमान, उनकी सुनवाई न होना। पार्टी पदाधिकारियों के प्रति सरकार का नकारात्मक रवैया। संगठन के एक बड़े वर्ग का मत है की जानबूझकर उन्हें अपमानित करने और मनोबल तोड़ने का प्रयास अधिकारियों के माध्यम से किया गया। नाम ना छपने की शर्त पर एक बड़े पदधिकारी कहते हैं की अधिकारी सत्ता सर्वोच्च के इशारे पर ऐसा कर रहे हैं ताकि सरकार किसी तरह संगठन को भी अपने कब्जे में ले सके और यहाँ भी उनका ही अधिपत्य हो जाए।

विधायक, सांसद और मंत्री भी अपनी सरकार से नाराज है। इसका उदाहरण कोरोना काल में उनके द्वारा लिखे गए तीखे पत्रों से पता चलता है। पार्टी और सरकार के भीतर जबरदस्त खेमेबंदी है। मुख्यमंत्री का अपना खेमा है। संगठन और मंत्रियों के साथ साथ डिप्टी सीएम के भी खेमे हैं। और अब एक नए पावर सेंटर का सृजन ताजे बवाल के केंद्र में।नाम है अरविन्द कुमार शर्मा। पूर्व आईएएस अधिकारी और अब एमएलसी। दिल्ली शर्मा जी को पावर सेंटर बनाना चाहता है लेकिन लखनऊ ने इसको मानने से मना कर दिया है। 

दत्तात्रेय से शुरू हुई कवायद, बीएल संतोष से होते हुए राधा मोहन सिंह तक आ गयी है। हैरानी की बात ये है की दिल्ली क्या चाहता है इसकी भनक प्रदेश संगठन के किसी नेता को नहीं। दिल्ली ने यूपी के किसी नेता को लूप में नहीं रखा। दावे चाहे जो  जितने करे लेकिन लखनऊ में किसी को दिल्ली का मन पता नहीं।दिल्ली में ऐसी चर्चा है कि यूपी जीतना वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक परिवेश में काफी चुनौतीपूर्ण हो गया। कारण, कोरोना काल में राज्य सरकार की नाकामियां। बड़ी संख्या हुई मौतें। फेल हुई सरकारी व्यवस्था खासकर स्वस्थ्य की। गांव गरीब में कोरोना की त्रासदी और सरकारी उपेक्षा। ख़राब कानून व्यवस्था। जाति विशेष को संरक्षण। OBC और अपर कास्ट में ब्राह्मण समाज में सरकार के एक्शन पर गलत सन्देश जाना पार्टी को भारी पड़ता दिख रहा है। मुख्य कंसर्न किसी तरह OBC और ब्राह्मण समाज को थामे रहना है। निरंकुश अफसरों ने सरकार और पार्टी की लगभग हर बड़े मुद्दे पर भयानक किरकिरी करवाई है। दुनिया भर अखबारों में भारत में कोरोना त्रासदी की अधिकांश खबरें उत्तर प्रदेश से थी। खौफनाक तस्वीरें भी उत्तर प्रदेश से निकली। देश दुनिया में भारत की कोरोना से विफलता की कहानियां उत्तर प्रदेश सरकार की नाकामियों की वजह से बाहर आयी। दिल्ली इससे भी बेहद नाराज है।अब राधा मोहन द्वारा आनंदी बेन को सौंपे लिफाफे में क्या है ? क्या हो सकता है ? मंत्रिपरिषद का विस्तार और शक्ति संतुलन या फिर इससे भी बड़ा फैसला। इसके पहले आपको याद हो बस्ती दौरे पर गए मुख्यमंत्री को अचानक राजभवन से फोन जाना और उसके बाद लखनऊ वापिस आकर घंटा भर की बंद कमरे वार्ता हुई थी। ये अब दूसरी बार होने जा रहा ही की राजभवन में किसी ने दस्तक दी है। यानी आने वाले वक़्त में राजभवन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है ऐसा प्रतीत होता है। बीते ३ महीने में पार्टी को लग गया है जैसा चल रहा है अगर वैसा चलने दिया गया तो लखनऊ की हवाएं बदल जाएँगी। अगला एक हफ्ता बीजेपी के भीतर भी काफी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा। गेंद अब आनंदी बेन पटेल के पाले में है। दिल्ली ने अपने मन की बात उनसे कह दी है। लखनऊ और दिल्ली के बीच मौजूदा वक़्त में काफी ज्यादा संवादहीनता है। मामला दिलचस्प है। विपक्ष भी सन्नाटा खींचे बैठा है। फल गिरेगा तो उनकी झोली में ही आएगा।

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