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प्रवासी मजदूरों से पुलिस और सरकार दोनों ने अमानवीय जुल्म व्यवहार किया लेकिन एक भी मानवाधिकार समूह इसके खिलाफ मुखर नहीं हुआ

क्या ये आपको अजीब नहीं लगता  ? थोड़ा रीवाइंड करें ..  कारण जानें.. ? पिछली मोदी सरकार आते ही...

जिंदल की माइंस की NOC रोकी गयी और सुधीर चौधरी के तिहाड़ वाले केस में जिंदल से राजीनामा देके ख़त्म कराया गया। जो गौरी लंकेश नहीं झुकी उसकी हत्या हो गयी।  कासगंज हिंसा पे फ़र्ज़ी वीडियो चलाने वाले को 1 करोड़ वाली नौकरी सरकारी न्यूज प्रसार भारती में दे दी गयी। जिसने जशोदा बेन की खबर दिखाई उस सरकारी पत्रकार का तुरँत अंडमान ट्रांसफर हो गया ....  इन सब मामलों में हमने क्या किया ? इनके लिए हमने आवाज उठाई ?
आज मजदूरों की बजाय पत्रकार तबलीगी-पाकिस्तान पे खबर ना दिखाएँ तो क्या करें ?  गौरी लंकेश हो जाएँ ?

किसी भी जुल्म पर पुलिस को भी जिसका डर रहता था वो थे मानवाधिकार कार्यकर्त्ता और संगठन,  लेखक वर्ग। लेकिन पुणे में एक चिठ्ठी के आधार पर 16 लोगो पर प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश के चार्ज लगाए गए जिनमें से 9 एक्टिविस्ट थे जिनमे लेखक और शिक्षक और मानवाधिकार वकील थे। ये वकील लोगों के..आपके अधिकारों की कानूनी लड़ाई लड़ते थे। किसी ने ये पूछा कि इस डिजिटल इण्डिया में प्रधानमंत्री की हत्या की प्लानिंग कोई बेवकूफ भी चिट्ठी पे लिखेगा  ?
आज मजदूरों पर कीटनाशक छिड़के जा रहे, 50% आबादी आधा पेट खाना खा रही, रेलवे ट्रेक पे 16 मर गए और सरकार कह रही कि कोई सड़क पे नहीं है.. कल इसपे सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि "अख़बारों की खबर पे सुनवाई नहीं हो सकती"..  जब मानवाधिकार वकीलों को जेल में ठूंसा गया तब आपको उनकी सुध थी  ? अब कौन पूछे सुप्रीम कोर्ट से कि शाहीन बाग में बच्चा मरने की खबर पे जो मुंबई से पेटिशन डाली गयी थी वो भी खबर के आधार पे थी..  तब कैसे संज्ञान लिया था साहेब  ???

जगदलपुर के DM ने जब प्रधानमंत्री को चश्मा पहन के रिसीव कर लिया तो सरकार ने उन्हें नोटिस दे दिया था। साबरमती एक्सप्रेस में मुस्लिम एंगल डालने वाले राकेश अस्थाना को सरकार ने क़ानून बदल कर CBI में डाला। जब डाइरेक्टर अलोक वर्मा ने घूसखोरी में FIR की तो उन्हें रातो रात सस्पेंड कर दिया गया, कोर्ट से बहाल होके आये तो प्रधानमंत्री ने तुरँत रिटायर कर दिया। तब हम कहां थे ?  जब उनके घर के बाहर IB के 2 जासूस पकडे गए तब हमने क्या किया ? कर (टैक्स ) विभाग के 3 सबसे बड़े पदो पर बैठे अधिकारयों ने कोरोना में अमीरों से 5% ज्यादा टेक्स लेकर गरीबों को 5000 महीना अकाउंट में देने का सुझाव दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। हम इसपे नहीं बोल रहे..  आगे कोई ऑफिसर जनता की भलाई का सुझाव देगा  ?
आज जब मौलाना साद डोवाल से मिलके अंडर ग्राउंड हो जाते हैँ तो आपको समझ नहीं आता कि कहाँ से प्रेसर आया होगा  ? 

ज़ब जज लोया मरे और उनका बेटा बिना मीडिया से आंखे मिलाये सरकार को क्लीन चिट देने आया। अगले जज ने 10 हज़ार पन्नों की चार्जशीट को असंभव समय में पढ़ के क्लीन चिट दी तब तुम्हें नहीं लगा कि न्यायपालिका का खम्बा गिर रहा है... ? अभी दिल्ली के मुरलीधरन ने ऑर्डर देते ही उनका तबादला हो गया तब अपने क्या किया ?

जो मानवाधिकार कार्यकर्ता आपकी आवाज़ उठाते थे  वो या जेल में हैँ या ऊपर। पुण्य प्रसून वाजपेयी, अजित अंजुम, अभिसार शर्मा जैसे पत्रकार आज मुश्किल वक्त में है और अर्नब गोबर स्वामी जैसे Y श्रेणी कि सुरक्षा में.. आप सोचते हैँ हम क्या करें..  विपक्ष करें..  और विपक्ष को वोट ना देके आपने इतना कमजोर कर दिया कि वो आपसे आस लगाए बैठा है.. इन साब के परिवार हैँ,  ये सब भी डरते हैँ, आखिर ये आपके ही बीच के लोग हैँ। पहले खुद का डर निकालिये, खुद कि नैतिकता जगाइए। आवाज उठाइये, पहले ही बहुत देर हो चुकी,  अब किसका इंतज़ार है ? अब किसकी आस बाकी है?  #कालचक्र

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